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पगड़ी संभालिए मोदी जी

ब्रज की दुनिया
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मित्रों, हम भारतीयों के लिए पगड़ी का बड़ा महत्व है. सौभाग्यवश इस बात को हमारे प्रधान सेवक जी भी खूब समझते हैं. तभी तो लगभग हर भाषण में पगड़ी धारण किए रहते हैं. पगड़ी एक कपडा-मात्र नहीं होती वो एक जिम्मेदारी भी होती हैं.
मित्रों, जाहिर हैं कि हमारे प्रधान सेवक जी को जिम्मेदारियां देना नहीं लेना ज्यादा पसंद है. ऐसा जज्बा होना भी चाहिए लेकिन क्या वे इसमें सफल भी हो रहे हैं? क्या एक अकेली जान सबकुछ कर सकता है? अगर ऐसा संभव होता तो भगवत और देव मंडली में पोर्टफोलियो सिस्टम नहीं होता. फिर आदमी की तो औकात ही क्या!
मित्रों, जब मोदी सरकार ने शपथ ली थी तब और बाद में भी मैं बार-बार कहता आ रहा हूँ कि प्रधान सेवक जी आपका मंत्रिमंडल सही नहीं है. चाहे आप कपिलदेव को कप्तान बना दीजिए या इमरान खान को या फिर क्लाईब लायड को जब टीम अच्छी नहीं होगी कप्तान कुछ नहीं कर सकता. जब कई महीने पहले कई मंत्रियों से प्रधान सेवक जी ने इस्तीफा लिया तो लगा कि देर से ही सही उन्होंने हमारी बातों पर ध्यान दे दिया है लेकिन हुआ कुछ नहीं. एक रूडी भैया की बलि देकर सुधार की खानापूरी कर ली गई. जो मजबूत पड़े बच गए कमजोर पड़े नप गए.
मित्रों, फिर तो देश की जो स्थिति होनी थी हो रही है. देश इस समय एक साथ मंदी और महंगाई की विकट स्थिति को झेल रहा है. उधर किसान १० पैसे किलो आलू और ४ रूपये किलो मूंगफली बेचने को बाध्य हैं तो ईधर उपभोक्ताओं को वही आलू १२० गुना महंगा १२ रूपये किलो और मूंगफली २५ गुना महंगा १०० रूपये किलो मिल रहा है. दोनों छोर पर बैठे लोग मर रहे हैं और बीचवाला माल छाप रहा है. सरकार कहती है कि जीएसटी कम कर दिया लेकिन एक तरफ उपभोक्ताओं को सामान पुराने दरों पर ही मिल रहा है वहीँ दूसरी ओर सरकार को जीएसटी का भुगतान नए दर से किया जा रहा है. सेल टैक्स, इनकम टैक्स आदि सारे विभागों के बाबुओं का हफ्ता फिक्स है इसलिए सब आँखवाले अंधे बने हुए हैं. पाकिस्तान की गोलीबारी में आज भी रोजाना हमारे जवान बेमौत मारे जा रहे हैं. धंधा मंदा है और बेरोजगारी बढती ही जा रही है.
मित्रों, न्यायपालिका निरंकुश है, न्याय दुर्लभ है, कदम-२ पर घूसखोरी और कमीशनखोरी है, सार्वजानिक शिक्षा की मौत हो चुकी है और निजी विद्यालय लूट मचाए हुए हैं, परीक्षा दिखावा बनकर रह गई है, असली से ज्यादा नकली दावा बाजार में है, सरकारी अस्पतालों में कुत्ते टहल रहे हैं और निजी अस्पतालों से तो लुटेरे कहीं ज्यादा भले, पुलिस खुद ही अपराध कर और करवा रही है, सारे धंधे मंदे हैं लेकिन अवैध शराब और गरम गोश्त का व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है. पुलिस छापा मारती भी है तो सरगने को भगा देती है और बांकी लोग भी एक-दो महीने में ही न जाने कैसे बाहर आ जाते हैं. कुल मिलकर स्थिति इतनी बुरी है कि पीड़ित may I help you का बोर्ड लेकर घूमनेवाली पुलिस के पास जाने से भी डरते हैं. बैंकों की तो पूछिए ही नहीं पहले १० % कमीशन काट लेते हैं बाद में लोन की रकम देते हैं. बिहार में तो यही रेट है इंदिरा आवास तक में और प्रधान सेवक समझते हैं कि १००% पैसा गरीबों तक पहुँच गया. इतना ही नहीं क्या अमीर और क्या गरीब बैंक न्यूनतम राशि खाते में न होने के बहाने बिना हथियार दिखाए सबको लूट रहे हैं.
मित्रों, बिहार की स्थिति तो और भी बुरी है. यहाँ छोटे भाई नीतीश और छोटे मोदी मिलकर बालू से तेल निकालने का अनथक प्रयास कर रहे है जिससे गृह-निर्माण से जुड़े सारे दिहाड़ी मजदूर फांकाकशी को मजबूर हैं. खजाना खाली होने से सरकारी कर्मियों तक को कई-२ महीने तक वेतन के दर्शन नहीं होते. कुल मिलाकर जो गति तोरा सो गति मोरा रामा हो रामा. आम आदमी मर रहा है वहीँ तंत्र शराब बेचकर और घूस खाकर अपनी तोंद फुला रहा है.
मित्रों, सवाल उठता है कि इसका ईलाज क्या है? ईलाज तो यही है कि मोदी जी को समझ लेना होगा कि उनकी सरकार का हनीमून पीरियड अब समाप्त हो चुका है. जनता की आँखों में कुछ समय के लिए धूल जरूर झोंका जा सकता है लेकिन उनको स्थाई रूप से अंधा नहीं किया जा सकता. नोटा का सोंटा अभी गुजरात में चला है कल पूरे हिंदुस्तान में चलेगा. आज गुजरात में मोदी जी की पगड़ी उछलने से बच गई है लेकिन क्या पूरे देश में बच पाएगी? न जाने मोदी जी किससे और क्यों भयभीत हैं जबकि उनके पीछे सवा सौ करोड़ भारतीयों का न सही नए सर्वे के अनुसार कम-से-कम ८० करोड़ भारतीयों का समर्थन है? कहीं ऐसा न हो कि नेहरु जैसी ताकत पाने के चक्कर में मोदी जी की हालत सब साधै सब जाए वाली हो जाए. जागिए मोदी जी और अपनी और हमारी पगड़ी संभालिए क्योंकि हमने अपनी पगड़ी आपके हवाले कर रखी है. कुछ ऐसी धरातल पर दिखनेवाली योजनाएं भी बनाईए जिनकी समय सीमा २०१९ हो २०२२ नहीं क्योंकि २०१९ २०२२ से पहले आता है बाद में नहीं. साथ ही सरकार GDP के आंकड़े दिखाना बंद करे क्योंकि मुकेश अम्बानी की आय में तो हजारों करोड़ की वृद्धि हो गई लेकिन आम आदमी की हालत आज २०१४ से कहीं ज्यादा ख़राब है.

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