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मित्रों, वैसे तो देश पर शहीद होना गर्व की बात होती है. हम राजपूतों से ज्यादा इस बात को कौन जानता है? लेकिन हमें याद है कि जब हमारे छोटे चचेरे भाई वीरमणि ने १९९९ में अप्रतिम वीरता का प्रदर्शन करते हुए शहादत दी थी तब हमारे परिवार की क्या हालत हो गई थी. जी में आता था कि अभी हाथ में बन्दूक उठाऊँ और पाकिस्तान का नामोनिशान मिटा दूं. शहादत से १० दिन पहले ही तो हमसे मिलकर वो गया था और पांव छूकर हमसे आशीर्वाद लिया था.
मित्रों, खैर मेरे भाई ने तो तब शहादत दी थी जब पाकिस्तान के साथ घोषित युद्ध चल रहा था लेकिन आजकल तो कोई युद्ध नहीं चल रहा फिर रोजाना हमारे जवान क्यों शहीद हो रहे? पिछले तीन वर्ष में देश के अन्दर और बाहर 425 भारतीय सशस्त्र बल के जवान शहीद हो चुके हैं। इस बात की जानकारी लोकसभा में रक्षा राज्यमंत्री डॉक्टर सुभाष भामरे ने दी। उन्होंने बताया कि 2014 से 2016 के बीच भारतीय सेना के 291, नौसेना के 105 और वायुसेना के 29 जवानों ने शहादत दी है।
मित्रों, हमारे प्रधान मंत्री कहते हैं कि हमें चलता है की आदत को बदलना पड़ेगा तो हम पलटकर उनसे से पूछना चाहते हैं कि सैनिकों की शहादत के मामले में कब चलता है बंद होगा और कब तक बिना घोषित युद्ध के ही हमारे बहुमूल्य जवान मरते रहेंगे? अपने निजी अनुभव के आधार पर हम जानते हैं कि जब कोई जवान शहीद होता है तो वो अकेला शहीद नहीं होता बल्कि उसके साथ उसका परिवार भी शहीद होता है. माँ-बाप आजीवन अपने बेटे, पत्नी अपने पति, भाई-बहन अपने भाई के लिए तरसते रहते हैं. बच्चों के भी अरमानों का खून हो जाता है.
मित्रों, नेताओं का क्या है वो तो पहले भी कहते रहे हैं कि जवान सेना में जाता ही है शहीद होने के लिए. आज भी वे उतनी ही आसानी से यह बात कह सकते हैं क्योंकि उनका कोई सगा तो सेना में जाता नहीं.
मित्रों, कल जिस तरह से दिन के १२ बजे एक मेजर सहित हमारे ४ जवानों को पाकिस्तानी गोलीबारी में जान देनी पड़ी वो यह बताने के लिए काफी है कि अब पानी सर से होकर गुजर रहा है. अब वो वक़्त आ गया है कि पाकिस्तान को यह बता दिया जाना चाहिए कि हम उसकी शरारतों को और बर्दाश्त कर सकने की स्थिति में नहीं हैं. हमारे जितने जवान कारगिल युद्ध में मारे गए थे लगभग उतने जवान पिछले ३ सालों में बेवजह मारे जा चुके हैं और हम हैं कि अभी भी ट्विट-ट्विट खेल रहे हैं. कब बंद होगी हमारे जवानों की शहादत? कब एक सर के बदले १०० नरमूंडों को लाया जाएगा? अगर एक और कारगिल जरूरी है और हो जाए लेकिन पाकिस्तानी बंदूकों का मुंह बंद होना ही चाहिए जल्द-से-जल्द. सेना और भारत सरकार अगर उम्र में छूट देती है तो माँ भवानी की कसम हम खुद भी इसमें हिस्सा लेंगे. जब ८० साल की आयु में बाबू कुंवर सिंह जंग लड़ सकते हैं तो हम तो अभी उनसे आधी उम्र के ही हैं.
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