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विकास तब पागल था, अब तो उसका पागलपन दूर किया जा रहा है

ब्रज की दुनिया
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मित्रों, उन दिनों मैं हाईस्कूल में पढ़ता था. इसी दौरान मुझे आरा जाने का अवसर मिला. वहां रेलवे स्टेशन पर मैंने एक पागल को देखा जो लगातार बड़बड़ा रहा था कि पागल मैं नहीं हूँ, पूरी दुनिया पागल है. मैं आश्चर्यचकित था कि इसको खुद के शरीर तक की सुध तो है नहीं और ये पूरी दुनिया को पागल बता रहा है? बाद में कई पागलों के व्यवहारों का जब मैंने सूक्ष्म विश्लेषण किया, तो यही समझ में आया कि पागलपन की बीमारी का यह सामान्य लक्षण है कि हर पागल दूसरों को ही पागल समझता है.


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मित्रों, राहुल गाँधी का व्यवहार जबसे वे सार्वजानिक जीवन में आए हैं, हमेशा असामान्य रहा है. कभी विधेयक की कॉपी फाड़ने लगते हैं, तो कभी लेडिज टॉयलेट में घुस जाते हैं. कभी आलू की फैक्ट्री लगाने की बात करने लगते हैं. कभी भारत-चीन के बीच भारी तनाव के समय चीनी दूतावास में गुप्त मंत्रणा करने चले जाते हैं, तो कभी कहते हैं कि लोग मंदिर लुच्चागिरी करने जाते हैं.


इतना ही नहीं कभी यह भी कह देते हैं कि भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा कथित भगवा आतंकवाद है, जबकि पूरी दुनिया जानती है कि आतंकवाद का रंग हरा होता है, भगवा तो हरगिज नहीं. कभी अचानक थाईलैंड की गुप्त यात्रा पर निकल जाते हैं. खुद साल के ६ महीने विदेश में क्यों रहते हैं नहीं बताते, लेकिन प्रधानमंत्री की आधिकारिक विदेश यात्रा पर ऊंगली उठाते हैं.


कभी भारत की नाकामी के प्रतीक मनरेगा को रोजगार देने वाली महान योजना बताते हैं, तो कभी कहते हैं कि कांग्रेस घमंडी हो गई थी इसलिए हार गयी. कभी कहते हैं कि हम तो रोजगार नहीं ही दे पाए, मोदी भी नहीं दे पा रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि भारत इन दिनों एफडीआई में दुनिया में शीर्ष पर है, इसलिए भारी मात्रा में रोजगार का आना तय है.


मित्रों, जब प्रधानमंत्री बनना उनके लिए जमीन पर गिरे हुए सिक्के को उठाने से भी ज्यादा आसान होता है, तब एक पुतले को पीएम बनाकर अनंत घोटालों का आनंद लेते हैं और जब चुनाव हार जाते हैं, तो कहते फिरते हैं कि मैं प्रधानमंत्री बनने को तैयार हूँ. मैं ६ महीने में देश की कायापलट कर दूंगा. मानों उनको भी भगवान बुद्ध की तरह अचानक ज्ञान की प्राप्ति हो गई हो.


आश्चर्य है राहुल बाबा को आज तक पता ही नहीं है कि एनआरआई किसको कहते हैं. उनको यह भी पता नहीं है कि वे भारत में पैदा हुए हैं या इटली में, इसलिए वे भारत की महिलाओं से शॉर्ट्स और निक्कर पहनने की आशा रखते हैं. खुद के हाथों में जब शासन की बागडोर होती है, तो देश को भ्रष्टाचार और अराजकता की आग में जान-बूझकर झोक देते हैं और चीन-पाकिस्तान के हाथों का खिलौना बन जाते हैं.


जब अगली सरकार भ्रष्टाचार,आतंकवाद और माओवाद को जड़ से ही समाप्त करने का माद्दा दिखाती है और देश के विकास की गाड़ी को फिर से पटरी पर लाना चाहती है, तो चीन से तुलना कर-करके कहते हैं कि विकास पागल हो गया है. विकास को पागलखाने से वापस लाना होगा इत्यादि.


मित्रों, अब आप ही बताइए कि इन दिनों पागल कौन है? विकास अगर पागल था भी तो सोनिया-मनमोहन के समय था. जब एक साथ तीनों लोकों में घोटाले किए जा रहे थे तब विकास पागल था. जब हिंदूविरोधी सांप्रदायिक दंगा विधेयक लाया जा रहा था, तब विकास पागल था. जब लालू, मुलायम, मायावती मुकदमों से बरी हो रहे थे, तब विकास पागल था. जब भगवा आतंकवाद की झूठी कहानी रची जा रही थी, तब विकास पागल था, जब लाल किले से घोषणा की जा रही थी कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ कथित अल्पसंख्यकों का है, तब विकास पागल था. अब तो विकास के पागलपन को दूर किया जा रहा है राहुल बाबा.


मित्रों, मैं समझता हूँ कि मोदी सरकार को तो अपनी उपलब्धियों को गिनाने की आवश्यकता ही नहीं है. केरल-कश्मीर से लेकर डोकलाम तक प्रत्येक क्षेत्र में स्वयं उसका काम बोलता है और रोज ही बोलता है. अब राहुल बाबा को दिखाई और सुनाई नहीं दे रहा है, तो इसमें हम क्या कर सकते हैं या मोदी सरकार क्या कर सकती है?


पेट्रोल के दाम ७-8 रुपये बढे़ थे, अब कम भी हो रहे हैं. जीएसटी को लेकर भी व्यापारियों को जो समस्याएँ थीं दूर कर दी गई हैं. आश्चर्य है कि राहुल गाँधी को नोट और कागज में कोई फर्क क्यों नजर नहीं आ रहा है? वे क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था का शुद्धिकरण हुआ है? आतंकियों और नक्सलियों की गतिविधियों में कमी आई है.


बेनामी संपत्ति की जब्ती से अर्थव्यवस्था पूरी तरह से शुद्ध और पवित्र हो जाएगी. क्या उनसे हम उनकी क्षमता से बहुत ज्यादा की उम्मीद कर रहे हैं? क्या उनके दोनों कानों के बीच का स्थान रिक्त है? क्या उन्होंने विदेश जाकर कुछ सीखा ही नहीं है या सीख ही नहीं सकते?


मित्रों, ये तो हद की भी हद हो गयी. एक भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने वाली और सच्चे मन से भारत को फिर से विश्वगुरु बनाने की दिशा में काम करने वाली सरकार को ही पागल बताया जा रहा है? ये सब क्या है राहुल बाबा? कब तक बचपना करते रहिएगा? अब तो ४७ साल के हो चुके हैं आप. हम तो सर्वे भवन्तु सुखिनः में विश्वास रखते हैं, इसलिए हमसे चुप नहीं रहा गया.

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