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मित्रों, यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आजादी के बाद से अगर कोई व्यवसाय सबसे ज्यादा घाटे में रहा है तो वो है कृषि. कहने को तो किसान अन्नदाता है और पूरे देश का पेट भरते हैं] लेकिन उनके खुद के हाथ बारहों मास खाली रहते हैं. अगर आप महंगाई के आंकड़े देखेंगे को पाएंगे कि सबसे कम तेजी से अनाजों के दाम बढ़ते हैं. दूसरी चीजों के दाम आसमान को छू जाएं तो कोई चर्चा नहीं होती, लेकिन आलू-प्याज-टमाटर थोड़े से महंगे हो जाएं, तो मीडिया आसमान को सर पे उठा लेती है. मानों किसानों ने लगातार घाटा उठाकर दूसरों का पेट भरने का ठेका ले रखा हो.
मित्रों, अनाज-दाल-सब्जियों की खेती करने वाले किसानों को आजादी के बाद से ही लगातार वादों का सब्जबाग दिखाया गया, लेकिन हुआ कुछ नहीं. अंग्रेजों के समय कम-से-कम उनकी स्थिति इतनी बुरी तो नहीं थी कि उनको आत्महत्या करनी पड़े? वर्तमान केंद्र सरकार भी कहती है कि २०२२ तक किसानों की आय दोगुनी कर दी जाएगी. मगर इस दिशा में अभी तक कोई काम होता हुआ दिख नहीं रहा है. पता नहीं रातों रात सरकार ऐसा चमत्कार कैसे कर देगी?
मित्रों, यूपी विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा ने वादा किया था कि जीतने के बाद वो किसानों के कर्ज माफ़ करेगी, लेकिन अब लगता है कि किसानों को फिर से उसी तरह से ठगा गया है जिस तरह से पिछली अखिलेश सरकार ने ७५ पैसे और ५ रुपये का चेक देकर ठगा था. कितना बड़ा मजाक है लोन डेढ़ लाख का, माफ़ी का चेक १ रुपया और १०० रुपये का? इससे ज्यादा पैसे तो बैंक आने-जाने में ही खर्च हो जाएंगे? फिर क्यों किया कर्ज माफ़? सरकार ने किसानों को भिखारी समझा है क्या जो उनके कटोरे में ५० पैसे और एक रुपये डाल रही है? बतौर अलफांसों जी क्या किसान इतने पैसों के बिना मरे जा रहे थे?
मित्रों, मैं हमेशा से ऐसी कर्ज माफ़ी के खिलाफ रहा हूं. वास्तव में इससे देश का तो कोई भला नहीं ही होता है, किसानों को भी सिर्फ तात्कालिक फायदा होता है. अच्छा हो कि ऐसे इंतजाम किए जाएं कि किसान भिखारी के बदले वास्तविक दाता बन सकें. मैं तो उस दिन की कल्पना करके डरता रहता हूं, जिस दिन हमारे देश के किसान हड़ताल कर देंगे? क्या आपने कभी सोचा है कि अगर ऐसा हुआ तो देश की हालत क्या होगी?
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