- 707 Posts
- 1276 Comments
मित्रों, मेरा ननिहाल महनार रोड रेलवे स्टेशन के पास है. पहले गाँव में खूब धान उपजता था. लोग पोरा (पुआल) बेचकर घोड़ा खरीदते थे. फिर नेहरू के समय गाँव में नहर खोद दी गई और सब सत्यानाश हो गया. आज वहां एक मुट्ठी धान नहीं होता. गर्मी में नहर सूखी रहती है और बरसात में नहर से होकर इतना पानी आ जाता है कि खेतों में अथाह पानी लग जाता है. तीन फसली जमीन एक फसली हो गई है.
मित्रों, बिहार के ज्यादातर इलाकों में कमोबेश यही स्थिति है. 1954 से पहले जब तक नदियों को तटबंधों और बांधों में नहीं बाँधा गया था, पानी को बहने के लिये काफी खुली जगह मिलती थी. पानी कितना भी तेज हो जन-धन की हानि बहुत अधिक नहीं होती थी. 1954 से पहले नदियाँ खुली जगह में धीमे प्रवाह से बहतीं थीं. मध्दिम प्रवाह उर्वर मिट्टी के बहाव में मदद करता था व आसपास के इलाके उर्वर हो जाते थे. परंतु तटबंध से नदियों को बाँधने के बाद जल भराव व बाढ़ से तबाही शुरू हो गई.
बिहार की बाढ़ का मुख्य कारण तटबंध और बाँध हैं. तटबंध बाढ़ को नियंत्रित करने व सिंचाई को बढ़ावा देने के लिये हैं, परंतु इनसे बाढ़ रुक नहीं पाती है, बल्कि तटबंध टूटने से बालू बहुत तेज गति से बहता आता है, जिससे आसपास की उर्वर भूमि भी बंजर हो जाती है. तटबंध निर्माण से ठेकेदारी व भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिलता है. बिहार में कई सारे ठेकेदार विधायक व मंत्री बन गये हैं. बाढ़ नियंत्रण व सिंचाई के नाम पर ये तटबंध राजनीति की देन हैं. तटबंध बाढ़ से सुरक्षा की बजाय बाढ़ की विभीषिका में वृध्दि करते हैं. अगर आप आंकड़े देखें, जैसे-जैसे तटबंध बनते गये हैं, बाढ़ में तेजी आती गयी है.
मित्रों, यही नहीं पर्यावरणविदों का मानना है कि भूकंप के बाद अगर बाँध चरमराता है व टूटता है, तो पूरा उत्तरी बिहार बह जायेगा, कुछ नहीं बचेगा. दूसरे, भूमंडलीकरण के दौर में किस देश का संबंध कब दूसरे देश से बिगड़ जाये कहना मुश्किल है. उदाहरण के लिए बिहार के दरभंगा में चीन को ध्यान में रखकर हवाईअड्डा बनाया गया है. अगर कल चीन के साथ हमारे संबंध गड़बड़ाते हैं और चीन इस बाँध पर बमबारी करता है तो पूरा इलाका बह जायेगा. दूसरे, नेपाल में माओवादी सत्ता में हैं. बिहार में भी कई सारे इलाके नक्सली हिंसा से प्रभावित हैं. बड़े बाँध नक्सलवादियों के निशाने पर हमेशा रहेंगे और जरा से हमले से भीषण तबाही आ जायेगी.
मित्रों, बिहार के काफी संवेदनशील माने जाने वाले किशनगंज, अररिया आदि जिलों में इस समय जो जलप्रलय की स्थिति चल रही है, हो सकता है कि उसके पीछे चीन का हाथ हो और चीन ने नेपाल को ज्यादा पानी छोड़ने के लिए उकसाया हो. इन पीकॉक नैक कहे जाने वाले सीमांचल के जिलों में लगभग सारे-के-सारे सड़क पुल बह गए हैं. यहाँ तक कि कटिहार के पास रेल पुल भी बह गया है, जिससे असम जाने वाली लगभग सभी ट्रेनों को रद्द करना पड़ा है.
ऐसी स्थिति में अगर चीन का हमला होता है, तो आप आसानी से सोच सकते हैं कि भारत की क्या हालत होगी. वैसे तो ये बाँध नेहरू की नासमझी के स्मारक बन चुके हैं, लेकिन फिर भी नेहरू को बांध बनाना ही था तो भारतीय इलाके में बनाते. नेपाल में बनवाने की क्या जरूरत थी? पैसा हमारा और नियंत्रण नेपाल का?
मित्रों, हमारे बिहार में एक कहावत है कि नक़ल के लिए भी अकल चाहिए. अमेरिका, रूस का अन्धानुकरण करने से पहले हमारे राजनेताओं को भारत की स्थिति-परिस्थिति का आकलन जरूर कर लेना चाहिए. यह बात आज के नेताओं पर भी लागू होती है. अब आप कहेंगे कि भविष्य में नदियों पर बड़े बांध बनने चाहिए या नहीं. तो मैं कहूँगा बिलकुल भी नहीं. बल्कि बड़े बाँधों की बजाय लघु बाँध बनने चाहिये. छोटे बाँधों से सिंचाई-क्षमता बढ़ेगी, बिजली उत्पादन भी होगा व बाढ़ से बचाव भी होगा.
Read Comments