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मित्रों, पिछले दिनों बिहार के राजनीतिक पटल पर जो घटित हुआ वह पूरी तरह से हतप्रभ कर देने वाला रहा. जो आदमी बार-बार ताल ठोककर कह रहा था कि मिट्टी में मिल जाऊँगा, लेकिन भाजपा से हाथ नहीं मिलाऊंगा, उसने चंद घंटों में पाला बदल लिया और भाजपा की गोद में जाकर बैठ गया. सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि लगा जैसे सबकुछ पूर्वनिर्धारित था.
मित्रों, सवाल उठता है कि नीतीश कुमार ने जो कुछ किया, क्या वो नैतिक रूप से सही था? नहीं कदापि नहीं. क्योंकि नीतीश का अचानक पाला बदल लेना जनादेश का सीधा अपमान है. मगर नीतीश के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. याद कीजिए वर्ष २०१० का विधानसभा चुनाव. तब नीतीश भाजपा के साथ मिलकर प्रचंड बहुमत से चुनाव जीते थे, लेकिन साल २०१३ में उन्होंने अचानक भाजपा से किनारा कर सरकार से बाहर कर दिया और रातोंरात उन्हीं लालू से हाथ मिला लिया, जिनके जंगल राज के खिलाफ लम्बे संघर्ष के बाद वे बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. जाहिर है नीतीश के लिए राजनीतिक मूल्यों और जनादेश का न तो पहले कोई मतलब था और न आज ही है. हमेशा जनता की आँखों में सिद्धांतों की धूल झोंकनेवाले नीतीश का तो बस एक ही सिद्धांत है कि अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता.
मित्रों, आश्चर्य है कि २०१५ के विधानसभा चुनावों के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जुमला वीर कहने वाले नीतीश कल कैसे अपने मिट्टी में मिल जानेवाले बयान पर यह कहकर निकल लिए कि ऐसा कहना उस समय की आवश्यकता थी. इसका तो यही मतलब निकालना चाहिए कि नीतीश अंग्रेजी में चाइल्ड ऑफ़ टाइम और हिंदी में मतलब के यार हैं.
मित्रों, इतना ही नहीं नीतीश समय-समय पर शब्दों की परिभाषा तक बदल देते हैं. उनके अनुसार कभी सुशासन का मतलब अच्छा शासन होता है, तो कभी कथित साम्प्रदायिकता को रोकना ही सुशासन हो जाता है, फिर चाहे उसकी एवज में राज्य में कानून नाम की चीज ही न रह जाए. इतना ही नहीं बार-बार उनकी सांप्रदायिकता की परिभाषा भी बदलती रहती है. कभी भाजपा का साथ देना घनघोर साम्प्रदायिकता होती है, तो कभी घोर धर्मनिरपेक्षता.
मित्रों, जाहिर है कि नीतीश कुमार ने थाली का बैगन बनकर मूल्यपरक राजनीति का मूल्य संवर्धन नहीं किया है, बल्कि उसका अवमूल्यन ही किया है. हाँ इतना जरूर है उनके इस कदम से देश और प्रदेश को लाभ होगा. प्रदेश एक बार फिर से विकास की पटरी पर लौट आएगा. चाहे आदती गलथेथर नीतीश ने कल की प्रेसवार्ता में भले ही यह नहीं माना हो कि पिछले 4 वर्षों में बिहार का विकास न केवल पूरी तरह से अवरूद्ध हो गया, बल्कि रिवर्स गियर में चला गया, लेकिन आंकड़ों में यह स्वयंसिद्ध है. चूंकि हमारे लिए नेशन फर्स्ट है, इसलिए हम नीतीश के इस कदम का स्वागत करते हैं, लेकिन भाजपा को चेताना भी चाहते हैं कि उनसे सचेत रहे और उनको ज्यादा सीटें देकर फिर से इतना मजबूत न होने दे कि वे फिर से मौसम के बदलने या फिर गिरगिट के रंग बदलने से पहले ही पाला बदलने की स्थिति में आ जाएं.
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