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निर्दोषों पर हमला हिंदुत्व नहीं

ब्रज की दुनिया
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मित्रों, मैंने अपने दिल्ली प्रवास के दौरान कई महिलावादी महिलाओं को पुरुषों जैसा व्यवहार करते देखा है। महिलाएं बेशक बराबरी के लिए संघर्ष करें, लेकिन क्या उनके उन्मुक्त होकर जीने, खुलेआम सिगरेट-शराब पीने से महिलाओं का सशक्तिकरण हो जाएगा? इसी तरह मैंने बचपन में गांव में कीर्तन करते हुए सरस्वती-विसर्जन किया है। बाद में जब महनार रहने आया, तो देखा कि मुहर्रम में मुसलमान लाउडस्पीकर पर हो-हल्ला करते हुए जुलूस निकालते हैं। अब देख रहा हूं कि हिन्दू भी सरस्वती-विसर्जन उसी तरीके से करने लगे हैं।

मित्रों, इस बार बाकी बिहार की ही तरह हाजीपुर में भी रामनवमी पर हिन्दू संगठनों की मदद से उग्र जुलूस निकाला गया। सारे जुलूस ऐतिहासिक रामचौड़ा मंदिर जाकर समाप्त हो रहे थे। हर साल की तरह जब हम सपरिवार शाम में रामचौड़ा मंदिर पहुंचे, तो पाया कि मंदिर के बाहर-भीतर हर जगह लम्पट युवकों का कब्ज़ा है। अंततः हम बिना पूजा किए ही लौट आए। हमें याद रखना चाहिए कि भीड़ जब उग्र हो जाती है, तो अच्छे-बुरे का विचार काफी पीछे छूट जाता है, फिर चाहे वो भीड़ हिन्दुओं की हो या किसी और धर्म को मानने वालों की।

मित्रों, जब भी कोई हिन्दू पर्व-त्योहार आता है, तो उस पर मुस्लिम आतंकवादी हमले का खतरा पैदा हो जाता है। अभी जिन अमरनाथ यात्रियों पर हमला हुआ उनकी हमलावरों से क्या कोई दुश्मनी थी? जान-पहचान तक तो थी नहीं। इन हमलों को रोकने का क्या समाधान है? क्या इनको रोकने के लिए हिन्दुओं को भी मुस्लिम आतंकवादी हो जाना चाहिए और निर्दोष मुस्लिमों पर हमला बोल देना चाहिए, भले ही वे इस तरह की हिंसा के खिलाफ ही क्यों न हों? फिर हममें और उनमें क्या फर्क रह जाएगा? क्या हमारे ऐसा करने से देश बेवजह के गृह-युद्ध की आग में नहीं जलने लगेगा? हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अगर हमारी भी प्रकृति और प्रवृत्ति हिंसक हो जाती है, तो हम भी उसी तरह से आपस में ही लड़-कटकर मर जाएंगे, जिस तरह से आज सीरिया, इराक, पाकिस्तान आदि में मुसलमान मर रहे हैं। यहां तक कि मस्जिदों तक को मुसलमानों के खून से ही लाल कर दे रहे हैं।

मित्रों, छत्रपति शिवाजी ने जब शाईस्ता खान को पूना में हराया, तो उसके हरम की औरतें भी गिरफ्तार कर ली गईं। जब उनको शिवाजी के दरबार में लाया गया, तो शिवाजी अपने ही सैनिकों पर नाराज़ हो गए और शाईस्ता खान की पत्नी जो औरंगजेब की मामी थी, से माफ़ी मांगते हुए कहा कि काश आप मेरी मां होतीं, तो मैं भी काफी सुन्दर होता। इतना ही नहीं इसके बाद सभी बंदी महिलाओं को ससम्मान पालकी में बिठाकर मुग़ल शिविर में भिजवा दिया।

मित्रों, अगर इसके उलट उस युद्ध में हिन्दू महिलाएं मुगलों के हाथ आ जातीं, तो वे उनके साथ क्या करते? बेशक वे उन पर टूट पड़ते। यह जानते हुए भी शिवाजी ने एक बेमिसाल उदाहरण पेश किया। क्या उनके ऐसा करने से हिंदुत्व का सिर और भी गर्व से ऊंचा नहीं हो गया? इसी तरह से राम ने जब लंका पर विजय प्राप्त की, तो राक्षस प्रजा के साथ दयालुतापूर्ण व्यवहार किया।

मित्रों, आज अगर हिन्दुओं की पूरे भारत में दुर्गति हो रही है, तो इसके लिए क्या मुसलमान जिम्मेदार हैं? नहीं, हो भी नहीं सकते, क्योंकि आज भी हिन्दू आबादी उनसे कई गुना ज्यादा हैं। आज अगर हिन्दू के घर में सांप घुस जाए, तो उसको मारने के लिए एक लाठी भी नहीं मिलती। किसने रोका है आत्मरक्षा के लिए वैध हथियार रखने से? जिनके पास अरबों की संपत्ति है, उनके पास भी एक लाइसेंसी बन्दूक तक नहीं होती. क्यों? क्या हम अरबों कमाने वाले लाख-दो लाख रुपये आत्मरक्षा पर खर्च नहीं कर सकते?

इसी तरह से जब चुनाव आता है, तो हिंदू किसी लालू, केजरीवाल, ममता, अखिलेश जैसे घोषित हिंदू विरोधी द्वारा दिए गए लालच में आकर उनको वोट दे देते हैं। जब चुनाव के बाद उनकी ही शह पर मुसलमान उनका जीना दूभर कर देते हैं, तब वे केंद्र सरकार से राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करने लगते हैं। आखिर केंद्र कहां-कहां राष्ट्रपति शासन लगाएगा?

मित्रों, फिर भी केंद्र सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के लिए अतिशीघ्र कानून बनाना चाहिए या यूं कहें कि बनाना पड़ेगा, जिससे भारत में विभिन्न धर्मों की आबादी का अनुपात स्थिर रहे. ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि आज मुस्लिमबहुल पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान जो १४ अगस्त,१९४७ तक भारत में ही थे उसमें हिन्दू विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके हैं। खुद हमारी कश्मीर घाटी में आज एक भी हिन्दू नहीं हैं, जबकि कुछ सौ साल पहले पूरा कश्मीर हिन्दू था।

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