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मित्रों, कई साल हो गए, तब उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि जहां 10-20 प्रतिशत मुसलमान होते हैं, वहां छिटपुट सांप्रदायिक दंगे होते रहते हैं। जहां 20-35 प्रतिशत होते हैं, वहां गंभीर दंगे होते हैं और जहां इनकी आबादी 35 प्रतिशत से ज्यादा होती है, वहां गैर मुस्लिमों के लिए कोई जगह नहीं है। तब मेरे साथ-साथ बहुत से लोगों को उनका बयान भड़काऊ और बकवास लगा था, लेकिन जब हम आज के पश्चिम बंगाल के हालात देखते हैं, तो लगता है कि योगी जी ने जो कहा था बिल्कुल सही कहा था और व्यावहारिक अनुभव के आधार पर कहा था।
मित्रों, साल २०११ में मैंने भी कुछ कहा था। तारीख थी १४ मई। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में चुनाव जीत चुकी थीं, लेकिन शपथ ग्रहण नहीं हुआ था। तब हमने कहा था कि सांपनाथ हारे, नागनाथ जीते। अर्थात ममता और कम्युनिस्टों में कोई तात्विक भेद नहीं है। दोनों का एजेंडा भी एक ही है और काम करने का तरीका भी एक ही। मित्रों, आज ममता के शासन के ६ साल बाद मैं ताल ठोंककर कह सकता हूँ कि इससे अच्छा तो कम्युनिस्टों का ही शासन था। ममता वोट बैंक के लिए वही गलतियां कर रही हैं, जो बंगाल में कम्युनिस्टों, यूपी में अखिलेश और केंद्र में सोनिया ने किया। कथित अल्पसंख्यकों को सर पर चढ़ा लेना और बहुसंख्यकों की पूर्ण अवहेलना करना।
मित्रों, आज बंगाल के हालात क्या हैं? आज बंगाल में हिंदू उतने भी सुरक्षित नहीं हैं, जितने बांग्लादेश में हैं। कहना न होगा कि योगी आदित्यनाथ की भविष्यवाणी यहां एकदम सटीक साबित हो रही है। बंगाल में मुसलमान ३५ % हो चुके हैं। आज के बंगाल में सचमुच हिन्दुओं के लिए कोई जगह नहीं रह गई है। बंगाल दूसरा कश्मीर बनने की ओर तीव्र गति से अग्रसर है। ऐसे में जब राज्य सरकार को उन पर सख्ती से नियंत्रण करना चाहिए, तो वह उनको और भी बढ़ावा दे रही है। मानो ६५ % हिन्दुओं की उसकी नजर में कोई कीमत ही नहीं।
मित्रों, कीमत हो भी कैसे, जबकि बंगाली हिन्दुओं में से बहुत-से लोग निजी या जातीय स्वार्थ के लिए तृणमूल कांग्रेस के समर्थक बने हुए हैं, हालांकि ऐसे ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब वे भी सीधी कार्रवाई के शिकार होंगे। समझे नहीं क्या? इतिहास गवाह है कि भारत की स्वतंत्रता के पूर्व इसी बंगाल की राजधानी कोलकाता से मुस्लिम लीग ने इतिहास के सबसे भीषण दंगों की शुरुआत की थी। लीग द्वारा ‘सीधी कार्रवाई’ की घोषणा से १६ अगस्त सन् १९४६ को कोलकाता में भीषण दंगे शुरू हो गये। इसे कलकत्ता दंगा या कलकत्ता का भीषण हत्याकांड (Great Calcutta Killing) कहते हैं।
‘सीधी कार्रवाई’ मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की मांग को तत्काल स्वीकार करने के लिए चलाया गया अभियान था। यह 16 अगस्त 1946 को प्रारंभ हुआ, जब लीग के उकसाने पर कलकत्ता तथा बंगाल और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में भीषण दंगे भड़क गए। 72 घंटों के भीतर छह हजार से अधिक लोग मारे गए। बीस हजार से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए और एक लाख से अधिक कलकत्तावासी बेघर हो गए। उसके बाद जब दंगों की आग पंजाब पहुंची, तो ६०-७० लाख लोग इसकी आग में झुलस गए। कहना न होगा कि प्रभावितों में और मरनेवालों में तब भी हिन्दू ज्यादा थे। तो क्या फिर से बंगाल उसी इतिहास को दोहराने जा रहा है? फिर से बंगाल से एक और बंग्लादेश निकलेगा? और क्या हम हिन्दू बंगाल खाली करके मूकदर्शक बने ऐसा होने देंगे?
मित्रों, आज संकट की इस विकट घड़ी में बंगाल में कौन-से दल हिन्दुओं के साथ हैं? बंगाल के अन्य दंगों की तरह वशीरहाट के दंगों में भी मुसलमानों ने न तो किसी कम्युनिस्ट नेता को मारा और न ही तृणमूल या कांग्रेस के कार्यकर्ता को। वहां भी सिर्फ और सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं की चुन-चुनकर हत्या की गयी। जब भी इस्लाम के नाम पर दंगे होते हैं और हत्याएं होती हैं, तब केवल भाजपाई ही हिन्दुओं के लिए जान देते आए हैं और देते रहेंगे। बाकी दल तो शुरू से ही घोषित हिन्दू-विरोधी हैं।
मित्रों, यह तो सही है कि केरल के साथ-साथ बंगाल में भी केवल भाजपाई हिन्दुओं के लिए जान दे रहे हैं, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा? कब तक हिन्दू कट्टर इस्लाम के हाथों बंगाल में जलता, लुटता और मरता रहेगा? कब तक केंद्र सरकार मूकदर्शक होकर हिन्दू महिलाओं का बलात्कार और हत्या देखती रहेगी? कब लगेगा बंगाल में राष्ट्रपति शासन? कब? कितनी हिन्दू बस्तियों के जलने के बाद?
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