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इजरायल में मोदी, देर आए दुरुस्त आए

ब्रज की दुनिया
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मित्रों, यह हमारे लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है कि इस समय हमारे प्रधानमंत्री इजराईल में हैं. दुर्भाग्यवश वे वहां जानेवाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं. दुर्भाग्यवश इसलिए क्योंकि वोटबैंक की गन्दी राजनीति के चलते पहले के प्रधानमंत्री वहां नहीं गए जबकि १९६२, १९७१ और १९९९ की लड़ाइयों के समय इजराईल ने हर तरह से हमारी मदद की. वो तो खुलकर हमारी मदद करना चाहता था लेकिन हमने उससे चोरी-चोरी चुपके-चुपके सहायता ली. वजह वही वोटबैंक की गन्दी राजनीति. वोटबैंक पहली प्राथमिकता और देश सबसे अंतिम या फिर प्राथमिकता सूची से बिल्कुल बाहर. वैसे वाजपेयी जी को मैं दोषी नहीं ठहराता क्योंकि उनके पास पूर्ण बहुमत था ही नहीं. तो मैं कह रहा था कि हमारी पूर्ववर्ती सरकारों ने अपने राष्ट्रीय हितों को नजरंदाज कर निजी हितों के लिए हमेशा उन फिलिस्तीनियों का एकतरफा और असंतुलित समर्थन किया जिन्होंने हमेशा कश्मीर के मुद्दे पर हमारे दुश्मन पाकिस्तान का साथ दिया.

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मित्रों, रामजी की कृपा से भारत के इतिहास में पहली बार केंद्र में एक ऐसी सरकार हमने बनाई है जिसके लिए पहली दस प्राथमिकताओं में एक से लेकर १० तक सिर्फ देशहित है और देशहित ही है. इसलिए सत्ता में आते ही पहले के चलन को बदलते हुए इजराईल से नजदीकियां बढ़ाई गईं और एकतरफा प्यार को दोतरफा बनाया गया. अब तक इजराईल बार-बार आई लव इंडिया का रट्टा लगाते हुए हमारी तरफ दोस्ती का हाथ बढा रहा था लेकिन हम बार-बार उसके बढे हुए हाथ, खुली हुई बाँहों को झटक दे रहे थे. मित्रों, अब जबकि इतिहास में की गयी गलतियों को मोदी सरकार ने सुधार लिया है और भारत के सच्चे दोस्त की तरफ दोगुनी गर्मजोशी के साथ हाथ बढाया है तो भारत की रणनीतिक क्षमता में एकबारगी जैसे चमत्कारिक अभिवृद्धि हो गयी है. इजराईल देखने में तो छोटा-सा मुल्क है लेकिन है सतसैया के दोहरे तीर की तरह. उसके पास जो तकनीक है वो अमेरिका को छोड़कर अन्य किसी के पास नहीं है.

दुनियाभर में डेढ़ करोड़ से भी कम आबादी वाला यहूदी समुदाय इस कदर प्रतिभा का धनी है कि अब तक १९२ नोबेल पुरस्कार उसकी झोली में जा चुके है. मानों इस समुदाय में लोग पैदा ही होते हैं नोबेल जीतने के लिए. कहना न होगा कि यह वही समुदाय है जो पिछले २००० सालों से दुनियाभर में ठोकरें खाता फिर रहा था. यहाँ तक कि शेक्सपीयर की कहानी मर्चेंट ऑफ़ वेनिस में भी उसको बुरा-भला कहा गया. इनको अगर किसी ने सही मायने में गले से लगाया तो वो केवल भारत था. जर्मनी में तो द्वितीय विश्वयुद्ध के ६ सालों में ६० लाख यहूदियों को यातना देकर मार दिया गया जिनमें से १५ लाख बच्चे थे. स्वामी विवेकानंद अंग्रेजों को यथार्थ क्षत्रिय कहा करते थे लेकिन इजराईल तो एकसाथ यथार्थ क्षत्रिय और ब्राह्मण दोनों है. साहस और बुद्धि का अद्भुत संगम. मित्रों, प्रधानमंत्री मोदी की इजराईल यात्रा से हमें एकसाथ कृषि, रक्षा और तमाम तरह के तकनीकी क्षेत्रों में अभूतपूर्व लाभ प्राप्त होने जा रहा है जिससे हम अभी तक बेवजह वंचित थे.

इतना ही नहीं अमेरिका में भारतीय लॉबी की ताक़त अब कई गुना बढ़ जाएगी क्योंकि उसके साथ अमेरिका की सबसे शक्तिशाली यहूदी लॉबी सुर-में-सुर मिलाकर बोलेगी. आश्चर्य होता है कि क्यों नेहरु को कूटनीति का महारथी कहा जाता है जबकि उनकी नीतियों से भारत को केवल क्षति हुई लाभ कुछ भी नहीं मिला भले ही नेहरु परिवार को मिला हो. सौभाग्यवश इजराईल यात्रा करके नरेन्द्र मोदी जी ने नेहरु सिद्धांत को पूरी तरह से तिलांजलि दे दी है और दुनिया को सन्देश दे दिया है कि अब हम भी वही करेंगे जो देशहित में होगा. दुनिया के बांकी देशों की सरकारें भी तो यही करती हैं

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