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मित्रों, बात साल २००८ की है. तब हम पटना हिंदुस्तान में कॉपी एडिटर थे. पृष्ठ संख्या १ के मुख्य पेजिनेटर दिलीप मिश्र भैया को घर जाना था. वे हमेशा हाजीपुर जंक्शन से ट्रेन पकड़ते थे. उनके कहने पर प्रादेशिक प्रभारी गंगा शरण झा ने हमें तत्क्षण छुट्टी दे दी. रास्ते में मैंने दिलीप भैया से कहा कि भैया यूपी के कानून-व्यवस्था की हालत बहुत ख़राब है जबकि बिहार में सुधार आ गया है. भैया का घर बलिया यूपी था. दिलीप भैया ने कहा कि दरअसल बिहार में जो ग्राम पंचायत मुखिया द्वारा शिक्षकों की नियुक्ति हुई है उसमें सारे गुंडे-बदमाश तमाम हेरा-फेरी के बल पर शिक्षक बन गए हैं. मैंने तत्काल भविष्यवाणी करते हुए कहा कि भैया भले ही अभी आपको इस तुगलकी नियुक्ति में बिहार का भला होता हुआ दिख रहा हो लेकिन सरकार का यह कदम बिहार के भविष्य को बर्बाद करके रख देगा और एक दिन ऐसा भी आएगा जब बिहार सरकार अपने इस कदम पर पछताएगी.
मित्रों. यह बहुत ही ख़ुशी की बात है कि वह दिन आ गया है और देर से ही सही नीतीश सरकार ने माना है कि उससे गलती हुई है. अपनी बेवाकी के लिए जाने जानेवाले बिहार के शिक्षामंत्री अशोक चौधरी ने एक ट्विट के माध्यम से जारी अपने बयान में स्वीकार किया है कि नियोजित शिक्षक बिहार के लिए बोझ बन गए हैं और शिक्षा तंत्र पर भारी पड़ रहे हैं.
मित्रों, मैंने अपने गाँव के मध्य विद्यालय वैशाली जिले के राघोपुर प्रखंड के राजकीय मध्य विद्यालय रामपुर जुड़ावनपुर बरारी में खुद देखा है कि एक-दो शिक्षकों को छोड़कर ज्यादातर नियोजित शिक्षक स्कूल आते ही नहीं हैं. कभी-कभी तो स्कूल में एक भी शिक्षक नहीं होता. एडवांस में हाजिरी बना लेते हैं या फिर औचक निरीक्षण से बचने के लिए अधिकारी को ही मैनेज कर लेते हैं. एक उपाय और भी किया जाता है कि छुट्टी का बिना तारीखवाला आवेदन-पत्र अपने किसी साथी को दे दिया जाता है कि अगर जाँच हो तो लगा दीजिएगा अन्यथा जेब में ही रखे रहिएगा. हाँ,चाहे स्कूल का ताला खुले या न खुले कागज पर सारे बच्चों के लिए उत्तम भोजन रोज जरूर बन रहा है. कुल मिलाकर इन नियोजित शिक्षकों की कृपा से बिहार के विद्यालयों में इन दिनों बांकी सबकुछ हो रहा है सिर्फ पढाई नहीं हो रही है.
मित्रों, इस बार का इंटर का रिजल्ट देखकर बिहार सरकार को भले ही आश्चर्य हुआ हो कि कैसे ५०० से ज्यादा स्कूलों के एक भी परीक्षार्थी उत्तीर्ण नहीं हुए लेकिन हमें तो नहीं हुआ. जब पढाई होगी ही नहीं तो अच्छा परिणाम कहाँ से आएगा? सवाल उठता है कि अब बिहार सरकार के पास विकल्प क्या है? विकल्प तो बस एक ही है कि बोझ को उतार फेंका जाए यानि सारे नियोजित शिक्षकों को हटाकर उनके स्थान पर टीईटी पास युवाओं को नियुक्त किया जाए. मगर क्या बिहार सरकार के पास ऐसा ऐसा करने का जिगर है? अगर नीतीश कुमार शराबबंदी पर तमाम विरोध के बावजूद अड़ सकते हैं तो अपनी सबसे बड़ी गलती को सुधार क्यों नहीं सकते? मुझे नहीं लगता कि अगर सरकार इस मामले में भूल-सुधार करती है तो उसका उसके वोटबैंक पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. बल्कि ऐसा होने पर इन निकम्मों से आजिज और अपने बच्चों के भविष्य के प्रति निराश हो चुके ग्रामीणों में ख़ुशी की लहर दौड़ जाएगी.
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