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मित्रों, इतिहास साक्षी है कि केंद्र में जब-जब भाजपा की सरकार बनती है देशविरोधी शक्तियों की जान पर बन आती है और वे अतिसक्रिय हो उठती हैं. वाजपेयी के समय भी ऐसा देखने को मिला था और अब एक बार फिर से दिख रहा है. कांग्रेसी नेताओं ने तो मोदी सरकार के आगमन के तत्काल बाद खुलेआम पाकिस्तान जाकर मोदी सरकार को अपदस्थ करने के लिए पाकिस्तान से सीधे-सीधे मदद ही मांग ली थी. हमें तभी ऐसा लगा था कि कांग्रेस पाकिस्तान से और चीन से भी मिली हुई है और इनसे उसको ठीक उसी तरह पैसे मिलते हैं जैसे हुर्रियत को कश्मीर में. तब भी मिलते थे जब केंद्र में उसकी सरकार थी और अब भी मिलते हैं जब वो विपक्ष में है वर्ना पाकिस्तान कांग्रेस की और किस तरह से मदद कर सकता है? जो पाकिस्तान कश्मीर में पत्थरबाजी के लिए पैसे दे सकता है वो कांग्रेस समर्थित किसान आन्दोलन को प्रायोजित क्यों नहीं कर सकता?
मित्रों, पहले जंतर-मंतर पर मूत्र-सेवन की नौटंकी और अब मध्य प्रदेश में हिंसा. अगर हम दोनों घटनाओं की टाईमिंग देखें तो हमें आसानी-से साजिश दिख जाएगी. २३ अप्रैल को जैसे ही दिल्ली नगर निगम के लिए मतदान समाप्त हुआ जंतर मंतर पर चल रहा फाइव स्टार आन्दोलन भी स्वतः समाप्त हो गया. ठीक उसी तरह अभी जब कांग्रेस केरल में सरेआम गाय काटकर और खाकर चौतरफा घिरी हुई थी तब मध्यप्रदेश में किसानों का आन्दोलन अचानक हिंसक हो उठा.
मिर्त्रों, इन किसान आन्दोलनों की एक और विशेषता है कि ये केवल वही हो रहे हैं जहाँ भाजपा की सरकार है. तो क्या सिर्फ उन्हीं राज्यों के किसान परेशान हैं जहाँ भाजपा का शासन है? खैर इन किसान आंदोलनों के आगे-पीछे चाहे जो भी हो लेकिन यह भी सच है कि आज भारत में कृषि खतरे में है जिसको बचाना चाहे जितना भी मुश्किल हो लेकिन बचाना तो पड़ेगा ही. यह भी सच है कि मोदी सरकार के लिए अगले लोकसभा चुनावों में कृषि और बेरोजगारी की समस्या गले की फांस बनने जा रही है क्योंकि इन दोनों को लेकर सरकार ने जो वादे किए थे उस दिशा में उसको कोइ खास सफलता मिलती दिख नहीं रही है. दूसरी बात कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने के लिए किसानों की कर्ज माफ़ी का वादा किया था जिसे उसने पूरा भी किया. स्वाभाविक था कि बांकी राज्यों के किसान भी इसकी मांग करते और ऐसा हुआ भी. आखिर यूपी के किसानों के साथ वीआईपी ट्रीटमेंट क्यों?
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