Menu
blogid : 1147 postid : 1333583

प्रणव राय पर छापा अभिव्यक्ति पर हमला कैसे?

ब्रज की दुनिया
ब्रज की दुनिया
  • 707 Posts
  • 1276 Comments

मित्रों,कहते हैं कि पत्रकारिता लोकतंत्र का वाच डॉग होती है. देश के बहुत सारे पत्रकार इस कहावत पर खरे भी उतरते हैं इसमें संदेह नहीं. लेकिन कुछ पत्रकार ऐसे भी हैं जो मूलतः पत्रकार हैं नहीं. वे पहरा देनेवाले कुत्ते नहीं हैं बल्कि अपने निर्धारित कर्तव्यों के विपरीत चोरों के मदद करनेवाले कुत्ते बन गए हैं. ये रुपयों की बोटी पर पूँछ तो हिलाते ही हैं बोटी की दलाली में भी संलिप्त हैं. अब जाकर ऐसे ही एक पत्रकार के खिलाफ वैसी कानूनी कार्रवाई की गयी है जिसकी प्रतीक्षा हमें २०१० से ही थी जब नीरा रादिया प्रकरण सामने आया था.
मित्रों, जो लोग दूसरी तरह के डॉग हैं वे एकजुट होकर भारत में लोकतंत्र और अभिव्यिक्ति की आजादी के खतरे में होने का रूदाली-गायन करने में लग गए हैं लेकिन सवाल उठता है कि पत्रकार होने से क्या किसी को दलाली-धोखाधड़ी करने,देशद्रोहियों का समर्थन करने की असीमित स्वतंत्रता मिल जाती है? भारत के संविधान में तो ऐसा कुछ भी नहीं लिखा गया है.
मित्रों,सवाल यह भी उठता है कि कार्रवाई किसके खिलाफ की गयी है? क्या एनडीटीवी को या उसके किसी कार्यक्रम को बैन किया गया है? नहीं तो फिर यह कैसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला हो गया? प्रणव राय ने धोखाधड़ी की,बैंक को नुकसान हुआ और उसने इसकी शिकायत सीबीआई से की. सीबीआई ने तो वही किया जो उसे करना चाहिए था. फिर चाहे आरोपी प्रणव राय हो या कोई और. ऐसा कैसे हो सकता है कि आम आदमी करे तो उसे जेल में डाल तो और ब्रजेश पांडे की तरह रसूख वाला करे तो आखें बंद कर लो? कोई जरूरी तो नहीं कि जैसा बिहार पुलिस करती है वैसा ही सीबीआई करे.
मित्रों,जो लोग आज सीबीआई पर सवालिया निशान लगा रहे हैं वे भूल गए हैं कि इसी सीबीआई की विशेष अदालत ने कुछ दिन पहले ही बाबरी-विध्वंस मामले में भाजपा के भीष्म पितामह सहित बड़े-बड़े नेताओं को दोषी घोषित किया है. अगर सीबीआई दबाव में होती तो क्या ऐसा कभी हो सकता था? हद है यार जब सीबीआई भाजपाईयों पर कार्रवाई करे तो ठीक जब आप पर करे तो लोकतंत्र पर खतरा? बंद करो यह दोगलापन और हमसे सीखो कि तमाम अभावों के बीच अपना अनाज खाकर पत्रकारिता कैसे की जाती है? हम इस समय वैशाली महिला थाना के पीछे घर बना रहे हैं और वो भी अपनी पैतृक संपत्ति बेचकर. हमने अपनी जमीन बेचना मंजूर किया लेकिन अपना जमीर नहीं बेचा. कबीर कबीर का रट्टा लगाना आसान है लेकिन कबीर बनना नहीं इसके लिए अपने ही घर को फूंक देना पड़ता है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh