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यूपी की जीत के सबक

ब्रज की दुनिया
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मित्रों,बहुत पुरानी कहावत है कि जो जीता वही सिकंदर.

अर्थात सफलता सारे अवगुणों को छिपा देती है.यह कहावत अपनी जगह सही है लेकिन एक और कहावत है जिसे हम सीख का नाम भी दे सकते हैं कि फूलो मत भूलो मत. मतलब कि सुख में फूलो मत और दुःख के दिनों को भूलो मत.वैसे बुद्धिमान लोग जीत से भी सबक लेते हैं और मूर्ख हार से भी नहीं लेते.
मित्रों,हम जानते हैं कि अभी भारतीय जनता पार्टी फूले नहीं समा रही है.उसने उत्तर प्रदेश में अद्भूत, अविश्वसनीय, अभूतपूर्व और अकल्पनीय जीत दर्ज की है.भविष्य में कोई दल या गठबंधन यूपी में ऐसी जीत दर्ज कराएगा या नहीं यह तो भविष्य में ही पता चलेगा लेकिन भूतकाल में तो निश्चित रूप से ऐसा नहीं हुआ था.दुनिया के अधिकतर देशों से ज्यादा जनसंख्या को धारण करनेवाले उत्तर प्रदेश में बहुमत प्राप्त करना ही बड़ी उपलब्धि होती है फिर इस तरह की एकतरफ़ा जीत!!!निश्चित रूप से भाजपा बधाई की पात्र है.जीत का जश्न मनाने में कुछ भी गलत नहीं लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ४ अन्य राज्यों में भी चुनाव हुए थे और उनमें से २ में भाजपा सत्ता में थी.उनमें से एक पंजाब में पार्टी की करारी हार भी हुई है.गोवा में भी पार्टी हारी है फिर भी ईज्ज़त बचा ले गयी है.इन पाँचों राज्यों के चुनाव-परिणामों का अगर हम विश्लेषण करें तो आसानी से देख सकते हैं कि इन राज्यों में कहीं-न-कहीं सत्ता-विरोधी लहर चल रही थी और इसलिए चल रही थी क्योंकि जनता से किए गए वादों में से शतांश को भी पूरा नहीं किया गया था.
मित्रों,कहने का तात्पर्य यह है कि इन चुनावों से सबक लेते हुए भाजपा को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत उन सभी राज्यों में वादों पर खरा उतरना पड़ेगा जहाँ उसकी पहले से सरकार है या अब जहाँ बनने जा रही है.यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार खुद शराब बेचने की फ़िराक में है जबकि उसके १० सालों के शासन के बावजूद राज्य के एक बड़े हिस्से पर नक्सलियों का आतंक कायम है.कल एक तरफ भाजपा जीत के जश्न मना रही थी तो वहीं दूसरी ओर कल ही भाजपा-शासित छत्तीसगढ़ में हमारे १७ जवानों को मौत के घाट उतार दिया गया.
मित्रों,राजनैतिक दांव-पेंच अपनी जगह हैं और उनका भी अपना महत्व है लेकिन देशहित सर्वोपरि है.सौभाग्यवश मोदी जी ने नेशन फर्स्ट को अपना ध्येय वाक्य घोषित भी कर रखा है.भ्रष्टाचार की समाप्ति की दिशा में जब मोदी सरकार को नोटबंदी जैसा छोटा कदम उठाने पर इतना विराट जनसमर्थन मिल सकता है तो सोंचिए कि तब क्या होगा जब सरकार बड़े कदम उठाएगी.
मित्रों,तुलसी बाबा कहते हैं कि प्रभुता पाई कोऊ मद नाहीं.अभी तक जिस तरह मोदी सरकार काम कर रही है उससे ऐसा तो लगता नहीं कि उसमें सत्ता का मद घर कर पाया है.फिर अभी तो भारत-निर्माण शुरू ही हुआ है.अभी देश और सरकार को बहुत-बहुत-बहुत लम्बा रास्ता इस दिशा में तय करना बांकी है.काम बहुत कठिन है और समय बहुत कम क्योंकि ६७ साल के मोदी जी अनंतकाल तक न तो जवान ही रहनेवाले हैं और न ही जीवित.जनता के धैर्य का तो कहना ही क्या? निस्संदेह रफ़्तार बढ़ानी होगी.

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