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सिर्फ़ बीपीएल को मिले आरक्षण

ब्रज की दुनिया
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मित्रों,प्रत्येक चुनाव की तरह पिछले कई दिनों से एक बार फिर से आरक्षण का मुद्दा गरमाया हुआ है.लोग कहते हैं कि काठ की हांड़ी एक बार ही आग पर चढ़ती है लेकिन कई अन्य चुनावी मुद्दों की तरह इसे भी बार-बार चुनावी चूल्हे पर चढ़ाया जाता रहा है.बिहार चुनावों से लेकर अब तक के अंतराल को अगर देखें तो आपने ध्यान दिया होगा कि इस बीच आरक्षण की पैदाईश लालू प्रसाद यादव जी जुबान पर एक बार भी आरक्षण शब्द नहीं आया.लेकिन यूपी चुनाव के आते ही फिर से वे शहीदी मुद्रा में आ गए हैं.
मित्रों,वास्तविकता तो यह है कि आरक्षण आज आर्थिक सशक्तिकरण से ज्यादा भ्रष्ट नेताओं के सशक्तिकरण का हथियार बना दिया गया है. वास्तविकता तो यह भी है कि वर्तमान काल में आरक्षण से इसके वास्तविक जरूरतमंदों को लाभ हो ही नहीं रहा है बल्कि इससे फायदा वे लोग उठा रहे हैं जो पिछड़ी और दलित जातियों में पैसेवाले हैं. फिर चाहे वो नौकरियों में आरक्षण हो या चुनावों में.
मित्रों,अच्छा तो रहता कि उपरोक्त दोनों तरह के आरक्षणों के लिए लाभार्थियों के निर्धारण के मानदंड को ही बदल दिया जाता.जिनका नाम बीपीएल सूची में हो केवल उनको ही आरक्षण का लाभ मिले.मायावती जैसी दौलत की बेटियाँ सामान्य सीट से चुनाव लड़ें। साथ ही बीपीएल सूची का निर्माण भी पूरी सावधानी से करना होगा अन्यथा क्रीमी लेयर की अवधारणा की तरह ही ये भी बेकार हो जाएगा.
मित्रों,अगर ऐसा किया जाता है तभी आरक्षण का कोई मतलब होगा. हालाँकि मैं जानता हूँ कि यह एक आदर्श स्थिति है और ऐसा हो पाना नामुमकिन तो नहीं लेकिन मुश्किल जरूर है. इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि जाति और धर्म-आधारित राजनीति का भारत से अंत हो जाएगा.

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