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मित्रों,यह तो आप भी जानते हैं कि हम हमेशा से पीने और पिलाने के खिलाफ रहे हैं. हमने तब शराब पीना समाज के लिए हानिकारक है शीर्षक से आलेख लिखा था. अच्छी बात है कि नीतीश कुमार जी ने हमारी बातों पर कान दिया और राज्य में इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन बिहार ऐसे ही बिहार थोड़े है. सरकार डाल-2 तो बिहारी पात-2. सो शुरू हो गई तस्करी.
मित्रों,अब तो स्थिति ऐसी है कि कुआँ खुद प्यासे के पास आने लगा है. मतलब कि बांकी चीज़ों की तरह शराब की भी होम डिलीवरी होने लगी है. सेवा की गुणवत्ता के मामले में स्नैपडील भी इनकी बराबरी नहीं कर सकती है. इधर फ़ोन किया नहीं कि उधर माल हाजिर.
मित्रों,कुछ लोग तर्क देते हैं कि इस सुविधा का लाभ तो केवल अमीर लोग उठाते हैं ग़रीबों का तो पैसा बच रहा है न. अगर आप भी ऐसा मानते हैं तो ग़लत मानते हैं. बल्कि ग़रीबों की जेबों पर भी शराबबंदी भारी पड़ रही है. हम समझाते हैं आपको. पहले 20 रुपया के पॉलिथीन में उनका काम चल जाता था. अब उतना ही मिज़ाज बनाने के लिए उनको 3 बोतल ताड़ी पीनी पड़ती है जो 60 रुपए की आती है.
यहाँ हम यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि बिहार सरकार किसी भी कीमत पर ताड़ी की बिक्री को रोक नहीं सकती है क्योंकि इसके लिए उसको सारे ताड़ के पेड़ों को कटवाना पड़ेगा जो संभव नहीं है. फिर जो सरकार शराब की बिक्री को नहीं रोक पाई ताड़ी को क्या रोकेगी.
मित्रों,ऐसा नहीं है कि हम अब नशामुक्त समाज के समर्थन नहीं हैं लेकिन सरकार को उसकी विफलता के प्रति आगाह करना भी तो हमारा ही काम है. इसलिए अच्छा होगा कि नीतीश जी अपने हाथों अपना ढिंढोरा पीटने के बदले शराब की तस्करी और अवैध निर्माण को रोकें. इस आलेख को भी हमने इस उम्मीद में लिखा है कि नीतीश जी इस बार भी हमारी बातों पर कान देंगे.
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