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हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह.मित्रों,काफी दिन पहले हमने छठी जमात की अपनी पाठ्य-पुस्तक में आचार्य विनोबा भावे द्वारा लिखित एक निबंध पढ़ा था-जीवन और शिक्षण.उसमें लेखक ने कहा था कि हमारी शिक्षा-प्रणाली एकदम बेकार है क्योंकि पढाई गयी बातें जीवन में काम नहीं आती हैं.जब विद्यार्थी पढाई पूरी कर लेता है तो उसके सामने आजीविका की भयंकर समस्या खडी हो जाती है.एकदम से व्यक्ति को आँख बंद कर हनुमान जी की तरह जीवन के क्षेत्र में कूदा दिया जाता है.
मित्रों,कहने का तात्पर्य यह है कि जिंदगी में योग्यता ही काम आती है,हुनर काम आता है डिग्री काम नहीं आती लेकिन इन दिनों देखने में आ रहा है कि कुछ लोग भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री और अन्य केंद्रीय मंत्रियों की डिग्रियों और जन्मतिथि के पीछे पड़े हुए हैं.ऐसा लगता है जैसे पीएम और उनके मंत्री सरकारी नौकरी में हैं जहाँ से उनको निर्धारित वेतन मिलता है और जहाँ से वे एक दिन रिटायर हो जाएँगे और उसके बाद उनको पेंशन मिलेगा.
मित्रों,भारत ने इससे पहले भारी-भरकम डिग्रियों वाले कम-से-कम तो पी.एम. तो देखे ही हैं-१.पीवी नरसिंह राव और २.मनमोहन सिंह.भारत ने यह भी देखा कि दोनों के समय में उनकी डिग्रियों से कई गुना ज्यादा घोटाले हुए.आज भी देश को पी.एम. का काम चाहिए न कि डिग्री.बिना व्यावहारिक ज्ञान और ईमानदारी के भारी-भरकम डिग्री वाला नेता लेकर क्या देश को उसकी डिग्रियों को लेकर चाटना है?क्या देश के लिए इतना ही काफी नहीं है कि २ साल में ही भारत चीन की आँख में आंख डालकर बात करने लगा है,एफ.डी.आई. का दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है,विनिर्माण के क्षेत्र में ८वें से ६ठे स्थान पर आ गया है,पिछले दो सालों में कोई घोटाला नहीं हुआ है,गरीबों को पहली बार बैंकों से जोड़ा गया है और बिचौलियों को समाप्त करने की दिशा में काम हो रहा है,पहली बार हर खेत को पानी देने की दिशा में सही तरीके से काम हो रहा है,एन.एच. और रेल लाईन निर्माण में अभूतपूर्व तेजी आई है,चलती ट्रेन में ही ट्विटर के जरिए समस्या का समाधान हो जाता है इत्यादि-इत्यादि?
मित्रों,इतिहास गवाह है कि भारत में ऐसे सैकड़ों महान व्यक्ति हो चुके हैं जो मैट्रिक तक पास नहीं थे.आज कबीर,निराला और जयशंकर प्रसाद को कौन नहीं जानता?राजकपूर से बड़ा कोई फ़िल्मकार हुआ भी है क्या?कहने का तात्पर्य यह है कि मोदी और उनके मंत्रियों की डिग्रियों के पीछे वही लोग पड़े हुए हैं जिनका काम ही सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना है और प्रत्येक स्थिति में आलोचना करनी है.खुद तो आलोचक जी आई.आई.टी. से पढ़े हैं लेकिन अब तक दिल्ली में ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे साबित होता हो कि उनको कुछ अलग तरीके से शासन करना आता है.जबसे ये सत्ता में आए हैं कभी औड तो कभी इवेन के चक्कर में जनता को उलझाए रखा है.जहाँ ये लोग करना थोडा और ढिंढोरा बहुत का करने में लगे हैं वहीं मोदी सरकार चुपचाप काम करने में लगी है.अब उसका काम दिखने भी लगा है और भारत की जनता अंधी नहीं है.जनता यह भी देख रही है कि कौन कलाम साहब के पक्ष में है और कौन औरंगजेब की तरफ,कौन दिन-रात बिना छुट्टी लिए देश के लिए काम कर रहा है और कौन बिना विभाग का मुख्यमंत्री बनकर फिल्मों की समीक्षा लिख रहा है.
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