Menu
blogid : 1147 postid : 1154403

साम्यवाद,समाजवाद,गांधीवाद और राष्ट्रवाद

ब्रज की दुनिया
ब्रज की दुनिया
  • 707 Posts
  • 1276 Comments

मित्रों,भारत ने हमेशा से ही स्वतंत्र विचारों और विचारधाराओं को सम्मान दिया है। हमारे भारत में कभी किसी मंसूर बिन हल्लाज को देश और समाज से अलग सोंच रखने के कारण जिंदा आग में नहीं झोंका गया,न तो किसी सुकरात को विषपान कराया गया और न ही किसी ईसा को सूली पर ही चढ़ाया गया। हमारा वेद कहता है मुंडे मुंडे मति भिन्नाः और जैन तीर्थंकर कहते हैं स्याद अस्ति स्याद नास्ति यानि शायद मैं कहता हूँ वह ठीक है या हो सकता है कि आप जो कहते हैं वह सही है।
मित्रों,कहने का तात्पर्य यह है भारत में हमेशा से प्रवृत्ति और निवृत्तिवादी दोनों तरह की विचारधाराएँ एकसाथ पल्लवित-पुष्पित होती रही हैं। वर्तमान भारत में भी कई तरह के वाद प्रचलन में हैं जिनमें साम्यवाद,समाजवाद,गांधीवाद और राष्ट्रवाद प्रमुख हैं। इनमें से ढोंगी तो सारे वाद वाले हैं। उत्पत्ति की दृष्टि से विचार करें तो इनमें से साम्यवाद और समाजवाद की उत्पत्ति विदेश की है जबकि गांधीवाद और राष्ट्रवाद ने भारत में जन्म लिया है।
मित्रों,साम्यवाद कहता है कि संसार में दो तरह के वर्ग हैं और उन दोनों में संघर्ष चलता रहता है। एक दिन यह संघर्ष चरम पर पहुँचेगा और तब दुनिया पर सर्वहारा वर्ग का शासन होगा और तब न तो कोई गरीब होगा और न ही कोई अमीर क्योंकि निजी संपत्ति भी नहीं होगी। साम्यवाद हिंसा की खुलकर वकालत करता है और मुसलमानों की तरह उसके लिए भी देशों की सीमाओं का कोई मतलब नहीं है बल्कि वह आह्वान करता है कि दुनिया के मजदूरों एक हो। यही कारण है कि आज देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा साम्यवादी हिंसा की चपेट में है। यही कारण है कि जब चीन ने भारत पर हमला किया तब भारत के साम्यवादियों ने चीन का समर्थन किया। यही कारण है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय चूँकि रूस इंग्लैंड एक साथ लड़ रहे थे इसलिए भारतीय साम्यवादियों ने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया। चाहे वो दंतेवाड़ा के जंगलों के बर्बर नरपशु साम्यवादी हों या फिर संसद में घंटों बहस लड़ानेवाले सीताराम येचुरी वैचारिक रूप से सब एक हैं। जिस तरह आतंकवाद बुरा या अच्छा नहीं होता उसी तरह से साम्यवाद भी बुरा या भला नहीं होता सबके सब भारतविरोधी और अंधे होते हैं। अंधे इसलिए क्योंकि उनको अभी भी यह नहीं दिख रहा कि करोड़ों लोगों के नरसंहार के बाद शासन में आए साम्यवाद ने रूस,पोलैंड,चीन,पूर्वी जर्मनी,उत्तरी कोरिया आदि का क्या हाल करके रख दिया था और बाद में लगभग सभी साम्यवादी देशों को अस्तित्वरक्षण हेतु किस तरह पूंजीवाद की ओर अग्रसर होना पड़ा। भारत के साम्यवादी लालची और भ्रष्ट भी कम नहीं हैं। वे चिथड़ा ओढ़कर घी पीने में लगे हैं।
मित्रों,इसके बाद बारी आती है समाजवाद की यानि ऐसी विचारधारा की जो साम्यवाद की ही तरह मानती है कि सबकुछ सारे समाज का होना चाहिए लेकिन लक्ष्यप्राप्ति अहिंसक तरीके से होनी चाहिए,लोकतांत्रिक तरीके से होना चाहिए। मगर भारतीय समाजवाद बहुत पहले ही अपने मार्ग से भटक चुका है। आरंभ में लोहिया-जेपी का झंडा ढोनेवाले समाजवादी आज निहायत सत्तावादी और आत्मवादी हो चुके हैं। लगभग सारी-की सारी समाजवादी पार्टियाँ किसी-न-किसी परिवार की निजी सम्पत्ति बनकर रह गई हैं और अपने-अपने परिवारों के साथ राज भोग रही हैं। उनका न तो देशहित से ही कुछ लेना-देना है,न तो प्रदेशहित से और न ही गरीबों से। सबै भूमि गोपाल की के पवित्र सिद्धांत से शुरू हुआ यह आंदोलन आज सबै कुछ मेरे परिवार की के आंदोलन में परिणत हो चुका है। बहुजनवादी और दलितवादी पार्टियों का भी कमोबेश यही हाल है।
मित्रों,भारत में अगर सबसे ज्यादा किसी वाद का दुरूपयोग किया गया है वह है गांधीवाद। कांग्रेस ने गांधीजी के नाम को तो अपना लिया लेकिन गांधी की विचारधारा को विसर्जित कर दिया। आज कांग्रेस ने घोर राष्ट्रवादी रहे गांधीजी को प्रिय रहे नारों वंदे मातरम् और भारत माता की जय तक से किनारा कर लिया है। आज कांग्रेस पार्टी सिर्फ मुस्लिम हितों की बात करनेवाली मुसलमानों की पार्टी बनकर रह गई है। उसका एकमात्र लक्ष्य हिंदू समाज और भारतीय संस्कृति के विरूद्ध बात करना, ऐन-केन-प्रकारेण सत्ता प्राप्त करना और फिर जमकर भ्रष्टाचार करना रह गया है। कांग्रेस गांधीवाद को पूरी तरह से छोड़ चुकी है बल्कि उसके लिए गांधीछाप ही सबकुछ हो गया है। उसकी प्राथमिकता सूची में न तो देश के लिए ही कोई स्थान है और न तो देशहित के लिए ही। जहाँ समाजवादी पार्टियाँ एक-एक संयुक्त परिवारों की संपत्ति बन चुकी हैं वहीं दुर्भाग्यवश कांग्रेस एक एकल परिवार की निजी संपत्ति बनकर रह गई है। आज कांग्रेस किसी विचारधारा का नाम नहीं है बल्कि पारिवारिक प्राईवेट कंपनी का नाम है। जहाँ तक तृणमूल कांग्रेस का सवाल है तो यह कांग्रेस और साम्यवाद के समन्वय से उपजी क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टी है इसलिए उसमें एक साथ इन दोनों के अवगुण उपस्थित हैं।
मित्रों,अंत में बारी आती है राष्ट्रवाद की। एकमात्र यही एक विचारधारा है जो तमाम कमियों के बावजूद भारत के उत्थान की बात करती है। भारत को फिर से विश्वगुरू बनाने,एक विकसित राष्ट्र बनाने के सपने देखती है फिर भी यह देश का दुर्भाग्य है कि इस विचारधारा को देश की जनता हाथोंहाथ नहीं ले रही है। एक तरफ तो राष्ट्रवादियों को इस बात पर गहराई से विचार करना होगा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और अपने संगठन और सोंच के भीतर वर्तमान सारी कमियों को दूर करना होगा। तो वहीं भारत की महान जनता को समझना होगा कि देश और देशवासियों से समक्ष एकमात्र विकल्प राष्ट्रवाद ही है क्योंकि बांकी के वाद अलगाववादियों का समर्थन करते हैं, देश को बर्बाद करने की बात करते हैं। राष्ट्र की बात नहीं करते देश के किसी न किसी भूभाग या जनता के किसी-न-किसी हिस्सेभर की बात करते हैं। उन सभी वादों के मजबूत होने अथवा राष्ट्रवाद के कमजोर होने का अर्थ है भारत का कमजोर होना।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh