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महापुरुषों का चरित्र-हनन कांग्रेस के नैतिक पतन की पराकाष्ठा

ब्रज की दुनिया
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मित्रों,किसी शायर ने लिखा है कि शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,वतन पे मरनेवालों का यही बांकी निशां होगा। लेकिन हमारी राजनैतिक पार्टियों का इतना अधिक नैतिक पतन हो चुका है कि शहीदों और महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के बजाए वे उनका ही चरित्र-हनन करने लगी हैं और जब वो पार्टी वो कांग्रेस होती है जिसने कभी देश को आजादी दिलवाने में मुख्य भूमिका निभाई थी तो दुःख और भी ज्यादा होता है। सवाल उठता है कि देश बड़ा है या कुर्सी बड़ी है?
मित्रों,प्रश्न यह भी उठता है कि कांग्रेस पार्टी का वर्तमान नेतृत्व क्या उन महापुरुषों के चरणों की धूल के बराबर भी है जिनके ऊपर वो आज कीचड़ उछाल रही है। पहले तो हमारे पतित नेताओं ने महापुरुषों को जाति में बाँटा और अब पार्टी में बाँट रहे हैं। आखिर वह कौन-सी सोंच है जिसके तहत कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी संसद में कहते हैं कि गांधी हमारे हैं और सावरकर आपके। क्या महापुरुष किसी जाति-विशेष या पार्टी विशेष के होते हैं या हो सकते हैं? क्या चंद्रशेखर आजाद या बिस्मिल ने सिर्फ ब्राह्मणों की आजादी के लिए या भगत सिंह ने सिर्फ सिखों की आजादी के लिए या अशफाकुल्लाह खान ने सिर्फ मुसलमानों की स्वतंत्रता के लिए शहादत दी थी? क्या गांधी जी ने सिर्फ कांग्रेस समर्थकों को आजाद करवाने के लिए आंदोलन किया था? अगर नहीं तो फिर गंदी राजनीति करके महापुरुषों के त्याग और बलिदान का मजाक क्यों उड़ाया जा रहा है?
मित्रों,कांग्रेस के प्रवक्ता से जब विनायक दामोदर सावरकर जिनको भारत की जनता प्यार से वीर सावरकर कहकर पुकारती है के चरित्र-हनन के संबंध में सवाल किया गया तो कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी ने अजीबोगरीब तर्क दिया। उनका कहना था कि 1924 से पहले के सावरकर तो वंदनीय हैं लेकिन उसके बाद के सावरकर निंदनीय हैं। हद हो गई कुतर्क की। कांग्रेस कहती है कि सावरकर ने 1941 में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों के लिए सैनिकों की बहाली करवाई थी तो सच तो यह भी है कि 1914 के प्रथम विश्वयुद्ध में कांग्रेस ने भी तन-मन-धन से अंग्रेजों को समर्थन दिया था तो क्या 1914 का कांग्रेस या 1914 के गांधी निंदनीय हैं और 1942 के वंदनीय।
मित्रों,हिंदी के महान नाटककार मोहन राकेश ने एक नाटक लिखा था आधे अधूरे। नाटक कहता है कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है बल्कि हर कोई अधूरा है फिर महापुरुष कैसे पूर्ण हो सकते हैं? स्वयं गांधी में भी कई कमियाँ थीं और उन्होंने भी कई गलतियाँ कीं जिनमें से कइयों का खामियाजा तो देश आज भी भुगत रहा है लेकिन उन गलतियों के बावजूद गांधी महान थे क्योंकि उन्होंने तमाम मानवीय कमजोरियों के बावजूद जो किया वह महान है,प्रातःस्मरणीय है। चूँकि इंसान गलतियों का पुतला होता है इसलिए ऐसा कोई इंसान नहीं है जिसकी आलोचना नहीं की जा सकती हो। क्या कांग्रेस का आज का नेतृत्व पूर्ण होने का दावा कर सकता है? क्या उसने आलोचना करने के लायक कोई गलती कभी की ही नहीं है?
मित्रों,कांग्रेस पार्टी चंद पत्रों के आधार पर वीर सावरकर को देशद्रोही साबित करना चाहती है लेकिन पत्र तो गांधी-नेहरू ने भी जेलों से अंग्रेजों को थोक में लिखे थे और उन पत्रों की भाषा भी कमोबेश वैसी ही थी जैसी कि सावरकर के पत्र की है तो क्या गांधी और नेहरू भी देशद्रोही थे? नेहरू ने आजाद भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अंग्रेजी सरकार को सुभाषचंद्र बोस से संबंधित जो पत्र लिखे थे उसकी भाषा गुलामों जैसी क्यों है क्यों कांग्रेस पार्टी बताएगी?
मित्रों,कहने का तात्पर्य यह है कि कांग्रेस पार्टी ने महापुरुषों को पार्टियों में बाँटकर और उन पर कीचड़ उछालकर,सूरज पर थूकने जैसी जिस नई राजनैतिक परंपरा की शुरुआत की है वह खुद उस पर ही भारी पड़नेवाली है। लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व सत्ता की पुनर्प्राप्ति की बैचैनी में पागल हो गया है। वह पूरी तरह से किंकर्त्तव्यविमूढ़ की अवस्था में है। कभी उसको देशद्रोही कन्हैया में देशभक्तों के सिरमौर भगत सिंह नजर आने लगते हैं तो कभी भगत सिंह के लिए भी आदर्श रहे सावरकर में देशद्रोही दिखने लगता है। अच्छा हो कि पार्टी नेत्तृत्व अपने पागलपन का समय रहते स्वयं ईलाज कर ले अन्यथा भारत की जनता को अगर यह काम करना पड़ा तो इस बार तो शवयात्रा में साथ जाने के लिए 44 लोगों को जनता ने भेज भी दिया था शायद अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की अर्थी को कंधा देने के लिए चार सांसद भी शेष न बचें।

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