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लालू जी के मामले में कानून अपना काम क्यों नहीं करेगा नीतीश जी?

ब्रज की दुनिया
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हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिेंह। मित्रों,हम वर्षों से यह पढ़ते चले आ रहे हैं कि अंग्रेजों की भारत को सबसे बड़ी देन देश में कानून का शासन और कानून के समक्ष समानता है। आपको याद होगा कि जब बिहार के निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नया-नया मुख्यमंत्री बने थे तब कानून-व्यवस्था से संबंधित प्रत्येक मामले में उनका एक ही रटा-रटाया उत्तर होता था कि कानून अपना काम करेगा। कानून ने अपना काम भी किया था और बिहार की कानून-व्यवस्था की स्थिति में एक लंबे समय के बाद सुधार देखने को मिला था।
मित्रों,लेकिन अभी दो-तीन दिन पहले उन्हीं नीतीश कुमार की सरकार ने पिछले साल बिहार बंद के दौरान राजद कार्यकर्ताओं द्वारा तोड़-फोड़,मारपीट और कानून के उल्लंघन से संबंधित मामलों को वापस ले लिया है। चूँकि इन मामलों में आरोपी रहे लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे अब उनके गठबंधन और उनकी सरकार में हैं इसलिए नीतीश कुमार जी ने इस मामले यह नहीं कहा कि कानून अपना काम करेगा बल्कि उनके द्वारा लिए गए निर्णय का लब्बोलुआब यह था कि इस मामले में कानून अपना काम नहीं करेगा क्योंकि वे कानून को अपना काम करने ही नहीं देंगे।
मित्रों,दूसरी तरफ जदयू विधायक सरफराज आलम के मामले में लालू-नीतीश-तेजस्वी-तेजप्रताप सभी एक स्वर में कह रहे हैं कि विधायक के खिलाफ कानूनसम्मत कार्रवाई होनी चाहिए। अगर हम दोनों घटनाक्रम को एक साथ जोड़कर देखें तो हमारी समझ में आ जाएगा कि अब नीतीश कुमार जी का कहना है कि कानून उन्हीं मामलों में अपना काम करेगा जिन मामलों में वे चाहेंगे कि वो अपना काम करे और जिन मामलों में वे नहीं चाहेंगे कि कानून अपना काम नहीं करे कानून अपना काम नहीं करेगा। घटनाक्रम को देखकर आसानी से विश्वास नहीं होता कि ये वही नीतीश कुमार जी हैं जिन्होंने कभी राज्य में कानून का शासन स्थापित करने के लिए काफी लंबी लड़ाई लड़ी थी।
मित्रों,इस प्रकार हम पाते हैं कि नीतीश कुमार की सरकार कानून के समक्ष समानता के संवैधानिक अधिकार का तो उल्लंघन कर ही रही है साथ ही कानून के शासन का भी खुलकर मजाक उड़ा रही है। कहने को तो वे और उनके गठबंधन और सरकार के साझीदार एक स्वर में कह रहे हैं कि राज्य में कानून का शासन है और रहेगा लेकिन वास्तविकता यही है कि राज्य में कानून का शासन है ही नहीं,मनमाना शासन है। अब जब मुख्यमंत्री और कैबिनेट ही कानून के शासन और कानून के समक्ष समानता के मौलिक सिद्धान्त की खिल्ली उड़ा रहे हैं तो फिर निचले स्तर पर क्यों नहीं अधिकारी खिल्ली उड़ाएंगे? फिर क्यों नहीं घूसखोरी और रसूखदारी का बाजार गर्म होगा? संस्कृत में कहा भी गया है कि महाजनो येन गतः स पंथाः अर्थात् बड़े लोग जिस मार्ग का अनुशरण करते हैं बाँकी लोग भी उसी मार्ग पर चलते हैं।

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