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इस्लाम,आतंकवाद और पाकिस्तान

ब्रज की दुनिया
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19 दिसंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,पिछले दिनों पेशावर के मिलिट्री स्कूल में जो कुछ भी हुआ उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। बच्चे,महिलायें या कोई भी निर्दोष इंसान चाहे भारत के हों या पाकिस्तान या कहीं के भी उनकी हत्या करना सीधे इंसानियत की हत्या करना है और कोई भी मजहब इंसानियत से ऊपर नहीं हो सकता। लेकिन जब कोई मजहब ही हिंसा की नींव पर खड़ी हो और अपनी स्थापना के समय से ही हिंसा का मजहब हो तो फिर ऐसी हिंसा को कोई रोकेगा कैसे? मैं यहाँ इस्लाम को हिंसा का मजहब इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इसको माननेवाले ही आज पाकिस्तान से लेकर नाइजीरिया तक खून बहा रहे हैं। दुर्भाग्यवश इस्लाम एक ऐसा मजहब है जिसके मुख्य धर्मग्रंथ कुरान में एक जगह नहीं बल्कि 50 जगह हिंसा का समर्थन किया गया है। जबकि यह तथाकथित ईश्वरीय पुस्तक खुलेआम अपने अनुयायियों से कहता है कि जब वर्जित समय बीत जाए, तब लड़ो और काफिर जहाँ मिले उन्हें मारो, बंदी बना लो, घेर लो, और हर लड़ाई में उनकी ताक में रहो! अभी-अभी कुछ ही समय पहले आईएसआईएस ने इसी कुरान के हवाले से यजीदी और कुर्द महिलाओं के साथ सामूहिक पाशविक बलात्कार और उनके क्रय-विक्रय को उचित ठहराया है।
मित्रों,सवाल उठता है कि जब सुन्नी मुसलमान हजारा,इसाई,अहमदियों,यजीदी,कुर्द,हिंदू,सिख बच्चों को बेरहमी से मारते हैं तब क्या इंसानियत की हत्या नहीं होती? क्या इस धरती पर सिर्फ सुन्नी मुसलमान ही जीने के हकदार हैं? फिर सुन्नी जब सुन्नी को मारता है तब वो किस अल्लाह के बताए रास्ते पर चल रहा होता है? जिस घर में बच्चे बचपन से ही रोजाना दूध पिलानेवाली मातासमान गायों के गले पर बड़ों को छुरियाँ फेरते हुए देखेंगे उस घर के बच्चे बड़े होकर क्रूर नहीं होंगे तो क्या दयावान होंगे? हिन्दी में एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है कि जाके पैर न फटे बिवाई सो क्या जाने पीड़ पराई। सो पूरी दुनिया में इस्लामिक आतंकवाद की नर्सरी पाकिस्तान को पेशावर बालसंहार के बाद शायद पूरी तरह से नहीं तो थोड़ी-थोड़ी यह समझ में आ गया होगा कि दूसरों को खाने के लिए अपने घर में बाघ को पालना कितना खतरनाक हो सकता है? कुरान के गलत अंशों को आधार बनाकर मजहबी हिंसा को प्रश्रय देना आत्मघाती भी हो सकता है।
मित्रों,पूरी इस्लामिक दुनिया में आज जो खून-खराबी हो रही है उसके लिए सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं बल्कि मेरी समझ में संयुक्त राज्य अमेरिका,रूस और सऊदी अरब भी जिम्मेदार हैं। अमेरिका ने अफगानिस्तान से सोवियत संघ को निष्कासित करने के लिए तालिबान को जन्म दिया,वैश्विक राजनीति में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए कुरान और इस्लाम का दुरूपयोग किया और पाकिस्तान की पंजाब और कश्मीर नीति का आँखें बंद करके समर्थन किया। रूस ने फिलीस्तीन के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा दिया तो सऊदी अरब ने पूरी दुनिया में इस्लाम के गलत-सही तरीके से प्रचार-प्रसार के लिए अनाप-शनाप पैसे दिए। सीरिया में आईएसआईएस व अन्य विद्रोहियों को पहले अमेरिका ने ही सहायता देकर मजबूती दी और आज कथित रूप से उसके खिलाफ ही लड़ रहा है।
मित्रों,पूरी दुनिया के मुसलमानों को देर-सबेर यह समझ लेना होगा कि आज की दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमान ही अकालमृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं। मरनेवाले भी अल्लाह हो अकबर कहकर मर रहे हैं और मारनेवाले भी अल्लाह हो अकबर के नारे लगाकर उनको मौत के घाट उतार रहे हैं। मैं नहीं मानता कि कोई भी किताब ईश्वर की लिखी हुई हो सकती है और उसमें संशोधन नहीं किया जा सकता। किताब या धर्म ने इंसान को नहीं बनाया बल्कि इंसानों ने किताबें लिखीं और धर्म बनाए यहाँ तक कि ईश्वर को भी बनाया। फिर क्यों कुरान में संशोधन नहीं हो सकता? जब कुरान को माननेवाले ही कुरान के पालन के नाम पर एक-दूसरे को मार डालेंगे तो फिर मानव-समाज ऐसे धर्मग्रंथ को लेकर क्या करेगा? मैं पहले भी अपने आलेखों जैसे- अफजल गुरू जेहाद का फल था जड़ नहीं,इराक में इस्लाम कहाँ है?,व्यक्ति नहीं विचारधारा है ओसामा में मुसलमानों से इस तरह का निवेदन कर चुका हूँ लेकिन तब से न जाने कितने ही लाख मुसलमानों को मुसलमान मार चुके हैं और अभी तक तो मेरी अपील बेअसर रही। जाने कभी मेरी अपील का असर होगा भी कि नहीं?!

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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