- 707 Posts
- 1276 Comments
11 नवंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,मैं पहले भी आपसे अर्ज कर चुका हूँ कि बिहार में पिछले कई महीनों से सरकार नाम की चीज ही नहीं रह गई है। अब जब सरकार ही लापता हो जाएगी तो जाहिर है कि उसका असर शासन के प्रत्येक अंग पर पड़ेगा सो बिहार की न्यायपालिका पर भी पड़ने लगा है। बिहार की अदालतों में इन दिनों मुकदमों की सुनवाई,उन पर निर्णय और निर्णय का क्रियान्वयन तो दूर की कौड़ी रही केस एडमिट तक नहीं हो रहे सिर्फ फाईल हो रहे हैं। कारण यह है अदालतों में जज हैं ही नहीं। पहले से जो सब जज थे उनको एडिशनल जज में प्रोन्नति दे दी गई और उनकी जगह किसी को भेजा ही नहीं।
मित्रों,हम हाजीपुर का ही उदाहरण लें तो यहाँ के जिला व्यवहार न्यायालय में कुल 9 सब जज हैं जिनमें से सिर्फ सब जज संख्या 8 और 9 में जज हैं बाँकी 1 से 7 तक की सब जज अदालतों में पिछले 3 महीने से कोई जज नहीं है जिससे सारा-का-सारा काम ठप्प पड़ा हुआ है। वकील और मुवक्किल अदालत आते हैं और नई तारीख लेकर वापस चले जाते हैं। चूँकि केस के एडमिशन का काम सब जज 1 के यहाँ होता है इसलिए इन दिनों नए मुकदमे भी एडमिट नहीं हो रहे सिर्फ फाईल हो रहे हैं। आप ऐसा समझने की भूल कदापि न करें कि ऐसी स्थिति सिर्फ हाजीपुर में है बल्कि ऐसी स्थिति पूरे बिहार की अदालतों में है। करीब 15-20 दिन पहले पटना हाईकोर्ट के महानिबंधक वीरेंद्र कुमार स्थिति का जायजा लेने हाजीपुर आए भी थे लेकिन उनके जाने के बाद से भी स्थिति जस-की-तस बनी हुई है।
सूत्रों के अनुसार,बिहार सरकार ने 183 मजिस्ट्रेटों को सब जज में प्रोन्नति देने का निर्णय किया है लेकिन संभावना यही है कि वे लोग अब नए साल में ही अपना नया पदभार संभालेंगे। ऐसे में वर्षों से इंसाफ के लिए अदालतों के चक्कर काट रही जनता करे भी तो क्या करें सिवाय नए जजों के इंतजार करने के? सूत्र यह भी बता रहे हैं कि मजिस्ट्रेटों को सब जज बना देने से तत्काल अदालतों में कामकाज तो शुरू हो जाएगा लेकिन मजिस्ट्रेटी में फिर मजिस्ट्रेटों की किल्लत हो जाएगी और उधर कामकाज ठप्प हो जाएगा। अगर बिहार सरकार ने हर साल न्यायाधीशों की बहाली के लिए परीक्षा का आयोजन किया होता तो निश्चित रूप से बिहार की जनता को ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता लेकिन बिहार सरकार न तो सिविल सेवा और न ही न्यायिक सेवा की ही परीक्षा हर साल ले रही है।
मित्रों,जहाँ भारत के प्रधानमंत्री मिनिमन गवर्ननेंट एंड मैक्सिमम गवर्ननेंस की बात कर रहे हैं वहीं लगता है कि बिहार की वर्तमान सरकार का उद्देश्य नो गवर्ननेंस है तभी तो बिहार के सभी महकमों में अराजकता और लापतातंत्र जैसी स्थिति बनी हुई है। नो गवर्ननेंस से उपजी जिसकी लाठी उसकी भैंस की स्थिति से पीड़ित जनता जब थाने में जाती है तो पुलिस पहले तो केस ही दर्ज नहीं करती और अगर केस दर्ज हो भी जाए तो अदालतों में जज साहब हैं ही नहीं। ऐसे में कोई आत्मदाह कर रहा है,तो कोई अपना घर छोड़कर होटल में ठहर जाता है,तो कोई अपने पुरखों के गांव-शहर को सदा के लिए अलविदा कह जाता है तो कोई सीधे नक्सली बन जा रहा है। जब तंत्र न्याय नहीं देगा तो लोगों के समक्ष और विकल्प बचता भी क्या है,बचता है क्या?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
Read Comments