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13-10-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,एक जमाना था जब वर्तमान वैशाली जिला क्षेत्र में रहनेवाले लोगों को किसी भी काम के लिए हाजीपुर से 55 किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर जाना पड़ता था। लोग सत्तू-चूड़ा-ठेकुआ लेकर निकलते और 15-15 दिन के बाद घर आते। कई लोग तो पैदल ही मुजफ्फरपुर का रास्ता नाप देते थे। रास्ते में अगर रिश्तेदारों का घर स्थित हो तो सोने पर सुहागा। दो दिन बुआ के घर ठहर लिया तो दो दिन दीदी के घर। इसी तरह कभी गोविन्दपुर सिंघाड़ा से मुकदमा लड़ने मुजफ्फरपुर का बार-बार चक्कर लगानेवाला एक युवक बार-बार के आने-जाने से इतना परेशान हो गया कि उसने मुजफ्फरपुर में अपना घर ही बसा लिया और उसका वही घर आज एक गांव बन गया है-कन्हौली का राजपूत टोला।
मित्रों,लोग लंबे समय तक मांग करते रहे कि उनको अलग जिला बना दिया जाए। आंदोलन हुए,धरना-प्रदर्शन हुआ और अंततः वह दिन आया 1972 में 12 अक्तूबर के दिन जब वैशाली को मुजफ्फरपुर जिला से अलग कर दिया गया और हाजीपुर को बनाया गया जिला मुख्यालय। अब लोगों को बार-बार मुजफ्फरपुर नहीं जाना पड़ता था। एक ट्रेन से आए अपना काम किया और फिर शाम की दूसरी ट्रेन से घर वापस हो गए। जिस इलाके में ट्रेन नहीं जाती वहाँ के लिए भी उसी कालखंड में बसें चलनी शुरू हो गईं। तब हाजीपुर एक कस्बा था आज महानगर बनने की ओर अग्रसर है। आज हाजीपुर में क्या नहीं है? आईआईएमएच है,नाईपर है,सीपेट है,कई उद्योग-धंधे हैं,महाविद्यालय हैं,कोचिंग हैं,आईटीआई हैं,ट्रेनिंग कॉलेज हैं और सबसे बढ़कर है पूर्व मध्य रेल का मुख्यालय। इनमें से अधिकतर हाजीपुर के हमारे सांसद रामविलास पासवान के प्रयासों का नतीजा हैं।
मित्रों,फिर भी कुछ तो ऐसा है जिसकी हमें कमी लग रही है और लगता है कि जैसे वही समय अच्छा था जब मुजफ्फरपुर हमारा भी जिला मुख्यालय हुआ करता था। हमारा आज का प्रशासन बेहद संवेदनहीन हो गया है। हाजीपुर में कई तरह के प्रशासनिक कार्यालय तो खुल गए हैं लेकिन वहाँ अब आम और निरीह जनता की सुनी नहीं जाती। वहाँ शरीफों को जलील किया जाता और चोरों की आरती उतारी जाती है। जो सड़कें पहले निर्माण के 10-10 साल बाद तक जस-की-तस रहती थीं आज साल-दो-साल में ही इतनी जर्जर हो जा रही हैं कि उन पर पैदल तक नहीं चला जा सकता। स्कूलों की बिल्डिंगों में अब पाँच साल में ही दरार पड़ने लगती है। पूरे जिले में कहीं भी पेय जलापूर्ति की समुचित व्यवस्था नहीं है,लगभग सारे-के-सारे सरकारी नलकूप बंद हैं,संत परेशान हैं और हर जगह चोरों का राज है। पुलिस का तो हाल ही नहीं पूछिए आज चोरी-डकैती होती है तो एक महीने बाद भी थानेदार आपका हाल पूछने आ जाएँ तो इसको उसकी मेहरबानी ही समझिए। पुलिसिया अनुसंधान का हाल ऐसा है कि ठीक नए साल के दिन थानेदार की थाने में घुसकर अपराधी हत्या कर देता है और पुलिस न तो हत्या में प्रयुक्त हथियार ही बरामद कर पाती है और न ही सहअभियुक्तों को गिरफ्तार ही कर पाती है और अंत में होता वही है जो इस अवस्था में होना चाहिए। मुख्य अभियुक्त शान से हाईकोर्ट से जमानत लेकर गांव लौटता है हाथी पर सवार होकर।
मित्रों,आज हमारे जिले की जो हालत है उसमें निश्चित रूप से दिन-ब-दिन भ्रष्ट से भ्रष्टतर और भ्रष्टतम होते जा रहे प्रशासन का भी काफी अहम योगदान है। आज पूरे वैशाली जिले में जिधर देखिए उधर अपराधियों का बोलबाला है। कभी हम गर्व करते थे कि हमारा जिला बहुत शांत जिला है। तब हमारे जिले में न तो लूट-मार थी और नक्सलवाद का तो कहीं नामोनिशान भी नहीं था। लेकिन क्या इस हालत के लिए सचमुच सिर्फ प्रशासन ही दोषी हैं? क्या हमारा अंतर्मन उतना ही शुद्ध है जितना कि हमारे उन पूर्वजों का था जिन्होंने इस जिले में एक-एक कर एक-एक गांव और एक-एक कस्बे को बसाया? कदापि नहीं। फिर जबकि सामाजिक,मानवीय और प्रशासनिक हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते ही जा रहे हों तो आप ही बताईए कि मैं किस मुँह से कहूँ कि हैप्पी बर्थ डे माई डियर वैशाली डिस्ट्रिक्ट,मुझे तुम पर गर्व है?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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