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खरखौदा पर चुप क्यों हैं धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार मीडिया,नेता और कार्यकर्ता?

ब्रज की दुनिया
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05 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अभी कुछ ही दिन हुए आड़ी से भी न काटी जा सकनेवाली रोटी खाते-खाते महाराष्ट्र सदन में रुके शिवसेना के कुछ सांसद क्रोधित हो उठे थे और उन्होंने अनजाने में कैंटीन मैनेजर रोजेदार मुसलमान के होठों से रोटी सटा दी थी यह कहते हुए कि तुम खुद ही खाकर देखो कि क्या यह इंसानों के खाने लायक है। फिर तो जैसे सारे मीडियाकर्मियों,नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की चाय की प्यालियों में तूफान आ गया। भारत के संविधान का मूल ढांचा और अनुच्छेद 25 खतरे में पड़ गए। उस रोजेदार के धर्म की रक्षा को जैसे सबने अपना धर्म बना लिया। टेलीवीजन से लेकर संसद तक हड़कंप मच गया।

मगर मित्रों,पिछले दिनों जब उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में मुसलमानों ने सिक्खों के एक पूरे बाजार को दिनदहाड़े आग के हवाले कर दिया तब इन ढोंगियों ने अपना मुँह तक खोलना लाजिम नहीं समझा। जहां एक को रोटी खिलानेभर से गांधी,मार्क्स और लोहिया के अनुयायियों की धर्मनिरपेक्षता हिलोरे मारने लगीं वहीं दुसरी ओर हजारों सिखों के मुँह की रोटी छिन जाने पर इनलोगों की संवेदना सोती रही। हद तो अब हो गई है जब मेरठ जिले के खरखौदा थाने की एक हिन्दू की लड़की को मुसलमानों ने पहले अपहृत किया,फिर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया,फिर उसका धर्म-परिवर्तन करवाया गया और फिर उसका गर्भाशय निकाल दिया गया। लड़की किसी तरह जान बचाकर भागी और तब जाकर उनके साथ हुए अन्याय को पूरी दुनिया ने जाना लेकिन अभी भी भारत के धर्मनिरपेक्षता के रक्षक मीडिया के दल्ले और गणिकाएँ,नेतागण और सामाजिक कार्यकर्तागण चुपचाप हैं। जैसे कि इन लोगों को साँप सूंघ गया हो,जैसे कि गांधी,मार्क्स और लोहिया इनसे कहकर गए थे कि चेलों जब मुसलमानों पर हिन्दू अत्याचार करें तभी उसे पाप मानना और जब मुसलमान हिन्दुओं की बेटियों की ईज्जत के साथ खिलवाड़ करें तो उसे पुण्य का काम समझना।

मित्रों,इस तरह का दोहरा चरित्र रखनेवाले धर्मनिरपेक्षतावादियों को चुल्लूभर पानी में डूब मरना चाहिए। यही घटना अगर किसी मुसलमान लड़की के साथ किसी गांव में हुई होती तो यही लोग रो-रोकर इस भीषण सूखे में भी उस गांव के तालाब को अपने आंसुओं से लबालब कर चुके होते लेकिन यही घटना जब एक हिन्दू लड़की के साथ घटी है तो धर्मनिरपेक्षता का कोई भी सिपाही अभी तक उससे मिलने नहीं पहुँचा है। क्या हिन्दुओं और मुसलमानों का दर्द अलग-अलग होता है? क्या दोनों के लिए सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा अलग-अलग है?

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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