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क्या मोदी मिट्टी के शेर हैं?

ब्रज की दुनिया
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15-03-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अगर आपने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी को किसी रैली के मंच पर आते हुए देखा होगा तो यह भी देखा होगा कि जब वे मंच पर आते हैं तो उनके समर्थक नारा लगाते हैं कि शेर आया,शेर आया। मोदी ने गुजरात में अपने काम से और रैलियों में अपने भाषणों से ऐसा दर्शाया भी है कि वे दिलेर मर्द हैं और उनका सीना सचमुच 56 ईंच का है।
मित्रों,फिर ऐसा क्या हो गया है कि वही नरेंद्र मोदी इन दिनों एक-के-बाद-एक आत्मघाती कदम उठाते चले जा रहे हैं। पहले उन्होंने घोर अवसरवादी रामविलास पासवान से बिहार में गठबंधन कर लिया वो भी तब जबकि सीबीआई ने उनके खिलाफ बोकारो कारखाना नियुक्ति घोटाला में तगड़े सबूत जुटा लिए थे। इतना ही नहीं रामविलास पासवान ने जिन उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा है वे या तो उनके परिजन हैं या फिर राज्य के सबसे बड़े अपराधी। आप ही सोंचिए कि क्या समाँ बंधेगा जब स्वच्छ छविवाले वरिष्ठ नेता डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह के खिलाफ अपराधी-शिरोमणि रामा सिंह चुनाव लड़ेंगे?! हमारे कुछ मोदी समर्थक मित्र फेसबुक पर कह रहे हैं कि चाहे कुत्ता खड़ा हो या गदहा हम तो उसे ही जिताएंगे क्योंकि मोदी को प्रधानमंत्री बनाना है। क्या ऐसा करने से ही लोकसभा में अपराधियों का प्रतिशत कम होगा? आज अगर हम चुप रहे तो फिर अगले 5 सालों तक हम किस मुँह से आँकड़ा दिखाकर आरोप लगाएंगे कि देखिए कैसे लोकसभा अपराधियों का जमावड़ा बनती जा रही है?
मित्रों,इतना ही नहीं हरियाणा में विनोद शर्मा,कर्नाटक में श्रीरामुलु को टिकट देने की बेताबी से तो ऐसा ही लग रहा है कि नरेन्द्र मोदी लोकसभा चुनावों में हार के डर से यानि 272 का आँकड़ा प्राप्त नहीं होने के भय से भयभीत हो गए हैं और इसलिए ताबड़तोड़ उल्टे-सीधे गठबंधन करते जा रहे हैं। क्या मोदी नहीं जानते कि लंपट राज ठाकरे से महाराष्ट्र में गठबंधन करने की स्वाभाविक प्रतिक्रिया बिहार में होगी? अगर इसी तरह भयभीत होकर वे उल्टे-सीधे कदम उठाते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब उनके पक्ष में बनी-बनाई हवा हवा हो जाएगी क्योंकि हवा बनाने में जहाँ महीनों लग जाते हैं वहीं हवा के खराब होने के लिए एक रात ही काफी होती है। कितना विडंबनापूर्ण सत्य है कि एक तरफ तो मोदी कांग्रेसी शहजादे की आलोचना करते रहे हैं वहीं दूसरी ओर खुद उनकी ही पार्टी ने इतने शहजादों को टिकट बाँटे हैं कि शहजादों की एक फौज ही खड़ी हो गई है।
मित्रों,युद्ध के मैदान में या तो हार होती या फिर जीत। शेरदिल योद्धा वही होता है जिसके मन में हार का भय एक क्षण के लिए भी घर न करने पाए। अधर्मियों की सेना जमा करके कोई धर्मयुद्ध कैसे लड़ सकता है? जब चुनावों से पहले भाजपा भी वही कर रही है जो कांग्रेस और आप पार्टी कर रही है तो फिर कैसे यकीन किया जाए कि चुनावों के बाद वह वह सब नहीं करेगी जो कांग्रेसनीत केंद्र सरकार पिछले 10 सालों से करती आ रही है? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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