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जिन्ना के सपनों का पाकिस्तान

ब्रज की दुनिया
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मित्रों,एक बार फिर से जिन्ना का जिन्न इतिहास की बोतल से बाहर आ गया है। एक बार फिर से यह बहस परवान पर है कि जिन्ना क्या थे और उनकी विचारधारा क्या थी? निस्संदेह जिन्ना एक पढ़े-लिखे और सुसंस्कृत व्यक्ति थे। शुरू में उनके विचार भी समन्यवादी थे। 1916 का लीग-कांग्रेस समझौता उनके ही मस्तिष्क की उपज थी लेकिन उसके बाद जिन्ना की सोंच और विचारधारा में लगातार स्खलन होता गया और 24 मार्च,1940 आते-आते जिन्ना का एक समन्वयक से विभाजक में पूरी तरह से रूपान्तरण हो चुका था। अब जिन्ना यह नहीं कहते थे कि हिन्दू और मुसलमान भारतमाता के दो बेटे हैं बल्कि वे तो अब यह कहते और मानते थे कि हिन्दू और मुसलमान सिर्फ दो संप्रदाय नहीं हैं बल्कि दो राष्ट्र हैं और वे एक साथ भारत में रह ही नहीं सकते। बाद में जब पाकिस्तान बन गया तो एक बार फिर उन्होंने विचारधारात्मक यू टर्न लिया और यह कहते हुए पाए गए कि आधुनिक इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान में सभी संप्रदायों को मिलजुल कर रहना होगा और एक साथ मिलकर नए और आधुनिकता से ओतप्रोत पाकिस्तान की रचना करनी होगी। मतलब जो हिन्दू और मुसलमान अविभाजित भारत में एक साथ नहीं रह सकते थे उन्हीं हिन्दू और मुसलमानों का धर्म के आधार पर बने नए राष्ट्र पाकिस्तान में एक साथ रहना जिन्ना की दृष्टि में बिल्कुल संभव था। इतना ही नहीं जिन्ना का यह भी मानना था कि इस नवोदित राष्ट्र में सभी धर्मों के माननेवालों को पूरी धार्मिक स्वतंत्रता होगी लेकिन होगा वह इस्लामिक राष्ट्र ही। अर्थात् जिन्ना पाकिस्तान को तुर्की के पदचिन्हों पर चलाना तो चाहते थे लेकिन सीमित संदर्भों में ही। वे उसे तुर्की की तरह पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र भी घोषित नहीं करना चाहते थे और न ही कर सकते थे। दरअसल ऐसा करना उनकी मजबूरी भी थी। उन्होंने कांग्रेस की तरह देश के नाम पर आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी थी उन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी थी धर्म के नाम पर। वे सिर्फ अंग्रेजों से ही आजादी की मांग नहीं कर रहे थे बल्कि उनके अनुसार उनकी असली आजादी की लड़ाई तो हिन्दुओं की पार्टी कांग्रेस से थी जबकि सच्चाई तो यह थी कि उस समय भी कांग्रेस सिर्फ हिन्दुओं की संस्था नहीं थी बल्कि उसके समर्थकों में मुसलमान भी भारी तादाद में थे। फिर सवाल उठता है कि जिन्ना अचानक इस तरह के सपने क्यों देखने लगे थे जिनको सच करना संभव ही नहीं था।
मित्रों,समस्या जिन्ना के सपने में नहीं बल्कि खालिश समस्या उनके व्यक्तित्व और सोंच में थी। जिन्ना मिर्च की मिठाई बनाना चाहते थे। वे एक तरफ तो यह चाहते थे कि अभूतपूर्व खून खराबी कराके भी मुसलमानों के लिए एक अलग देश का निर्माण करवा लें वहीं दूसरी ओर उनकी हार्दिक ईच्छा थी कि नवनिर्मित राष्ट्र आधुनिकता की राह पर चलनेवाला हो। जब मुसलमानों को पाकिस्तान नहीं मिल रहा था तब तो कहा अल्लाह हो अकबर का नारा लगाने को और दंगा करने को। 16 अगस्त,1946 की तिथि निर्धारित की सीधी कार्रवाई के लिए। उनके अनुयायी मुसलमानों ने किस प्रकार सीधी कार्रवाई की इसका प्रमाण उस ब्रिटिश रिपोर्ट में मिलता है जो यह कहता है कि 16 अगस्त,1946 के सूर्योदय से लेकर तीन दिन उपरान्त सूर्यास्त तक कलकत्ता के लोगों को निर्ममतापूर्वक पीटा गया,कुचल-कुचल करके मारा गया,जलाया गया,छुरों से घायल किया गया या 6000 लोगों को गोलियों से भून दिया गया और 20000 लोगों के साथ या तो बलात्कार किया गया या उन्हें मार-मार कर अपंग बना दिया गया। वही जिन्ना जब पाकिस्तान मिल गया तो शांति,सद्भाव,सहअस्तित्व और तुर्की की तरह के प्रगतिशील पाकिस्तान की बातें करने लगे। जबकि जिन्ना को यह अच्छी तरह से पता था कि उनको कैंसर है और इसलिए उनके पास अपने इन नए तरह के सपनों को साकार करने की मोहलत ही नहीं है जो भी करना है उनके उत्तराधिकारियों को करना है।
मित्रों,इस प्रकार हम पाते हैं कि जिन्ना घोर अवसरवादी थे और उनकी ही तरह उनके सपने भी अवसरवादी थे जो हमेशा रंग बदलते रहते थे। दरअसल जिन्ना एक हिन्दी फिल्म के पात्र अपरिचित की तरह विभाजित व्यक्तित्व की बीमारी से ग्रस्त थे। जिस कालखंड में नंदी हावी रहता वो शांति और सद्भाव की बातें करते और जब अपरिचित हावी हो जाता तो सिर्फ विध्वंस और बाँटने की। अपने जीवन के अंतिम काल में जिन्ना यह समझ चुके थे कि नए तरह के पाकिस्तान के निर्माण का जो सपना वे देख रहे हैं वह कभी पूरा नहीं होगा और पाकिस्तान भविष्य में एक मध्यकालीन इस्लामिक राष्ट्र बनकर रह जाएगा जिसकी बुनियाद होगी शरियत और कट्टरवाद। वह पाकिस्तान एक ऐसा पाकिस्तान होगा जहाँ चारों तरफ फिजाओं में सिर्फ और सिर्फ बारूद की गंध होगी और जमीन पर पड़ी होगी गोलियों से छलनी मलाला युसुफजई। हम सभी यह जानते हैं कि मरने के समय जिन्ना ने अपने डॉक्टर कर्नल इलाही बख्श से कहा था कि पाकिस्तान का निर्माण उनकी जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती थी। काश,जिन्ना को अपनी इस सबसे बड़ी गलती का अहसास 24 मार्च,1940 से पहले हो गया होता!

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