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खाद्य-सुरक्षा के नाम पर दे दे रे बाबा

ब्रज की दुनिया
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मित्रों,दिवाने तो आपने बहुत-से देखे होंगे मैंने भी देखे हैं। मैंने लोगों को लंगोट में फाग खेलते हुए भी देखा है और खूब देखा है मगर अल्लाहकसम मैंने आज तक किसी लंगोटधारी को दानी बनते हुए नहीं देखा है। मगर यहाँ तो बिल्कुल ऐसा ही हो रहा है। जिन लोगों ने देश को देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रख दिया है और जनता को लगातार महँगाई की चाबुक से मार-मारकर लहूलुहान कर दिया है वही बेईमान और मक्कार लोग आज खाद्य-सुरक्षा कानून लाकर खुद के दुनिया का सबसे बड़ा दानी होने का स्वांग रच रहे हैं।
मित्रों,पहले घोटाले कर-करके,कर-करके देश के खजाने को लूट लिया,टैक्स और महँगाई बढ़ाकर जनता को भिखारी बना दिया और अब जब सरकार का खर्च भी नहीं निकल पा रहा है,भीख देने को भी जब पास में पैसे नहीं बचे हैं तो सरकार के दो-दो बड़बोले मंत्री जा पहुँचे हैं अमेरिका कटोरा लेकर लेकिन अमेरिका ठहरा विशुद्ध बनिया सो वो क्यों बिना कुछ लिए नाक पर मक्खी भी बैठने दे?
मित्रों,अगर इन लुटेरों को जनता के लिए अपने निजी धन में से एक पैसा भी खर्च करना पड़े तो ये कदाचित् वो भी न करेंगे। लेकिन खजाना तो जनता का है खाली रहे या भरा इनके बाप का क्या? इन्होंने तो पिछले 9 सालों में अपने निजी कोष में इतना माल भर लिया है अब इनकी सात पीढ़ियों को हाथ-पाँव हिलाने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी। यह देश का दुर्भाग्य है कि बावजूद इसके इन लुटेरों का लूट से मन ही नहीं भर रहा है और ये लोग लगातार तीसरी बार दिल्ली के तख्त पर बैठने की जुगत भिड़ा रहे हैं।
मित्रों,वो कहते हैं न कि सत्ता बड़ी बुरी शह है। सत्ता की लत पड़ जाती है क्योंकि उसमें नशा भी है अफीम और हीरोइन से भी बहुत ज्यादा। हमारे कांग्रेसी नेताओं को यकीन ही नहीं हो रहा है कि वो लोग 2014 में सत्ता से बाहर भी हो सकते हैं। कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी ने कहा था कि अमीरी की कब्र पर उपजी हुई गरीबी की घास बड़ी जहरीली होती है सो विपक्ष में बैठने की सोंचकर ही सोनिया गांधी एंड फेमिली के हाथ-पाँव में सूजन आने लगी है। सरकारी खजाने में रोज के खर्च के लिए भी पैसा है नहीं और भूतपूर्व त्यागमूर्ति सोनिया अम्मा को पूरे देश के उन गरीबों को जो उनके और उनके परिवार के भ्रष्टाचार की वजह से भी गरीब हैं,भोज देना है। उनको न जाने कैसे यह मतिभ्रम हो गया है कि भारत के लोग भूखे,भिखारी और परले दर्जे के कामचोर हैं। वो काम करना ही नहीं चाहते इसलिए उनको काम नहीं दो बल्कि बिठाकर पैसे दे दो और रोटी दे दो फिर चाहे देश को खा जाओ,बेच दो,गुलाम बना दो वे बेचारे अहसानों तले इस कदर दबे रहेंगे कि किंचित भी बुरा नहीं मानेंगे।
मित्रों,आपने भी कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी सरकारी दफ्तर में यह लिखा हुआ देखा होगा कि शीघ्रता को भी समय चाहिए लेकिन सोनिया जी ने आजतक नहीं देखा। मान लीजिए कि आपको गंगा नदी पर एक पुल बनाना है तो उसमें कम-से-कम 5-7 साल तो लग ही जाएंगे। पहले जमीन का सर्वेक्षण होगा फिर पाया बनेगा तब ऊपर का काम शुरू होगा। कंक्रीट के जमने में समय तो लगेगा ही। अब अगर आप चाहेंगे कि वही पुल 6 महीने में बन जाए तब तो उस पुल का भगवान ही मालिक है। परन्तु इतनी छोटी-सी बात महाभ्रष्ट-देशबेचवा सोनिया गांधी एंड फेमिली के शातिर दिमाग में घुस ही नहीं पा रही है। वो आमादा हैं कि हम तो इसी साल 20 अगस्त से देश के लोगों को भिक्षा (भोजन) की गारंटी दे देंगे। जबकि इसके लिए पहले सही जरुरतमंदों का पता लगाना चाहिए था,फिर पीडीएस को ठीक-ठाक करना चाहिए था,फिर योजना की मॉनिटरिंग और अन्य प्रकार की व्यवस्थाएँ की जानी चाहिए थी तब जाकर अधिकार देना था वरना कागजी अधिकारों और गारंटियों की तो इस देश में पहले से ही बहुतायत है। वैसे गारंटी देने में इस परिवार का भी कोई जवाब नहीं है,इसने सबसे पहले जनता को सूचना की गारंटी दी हालाँकि अब अपनी ही पार्टी को इसकी मार से बाहर करने के लिए छटपटा रही है,फिर इसने 100 दिन के काम की गारंटी दी,फिर लगे हाथों शिक्षा की गारंटी भी दे दी और अब भीख की गारंटी देने जा रही है। हमारे प्रदेश बिहार की जनता तो सूचना के लिए मारी-मारी फिर रही है पर सूचना मिलती नहीं अलबत्ता कृष्ण-जन्मस्थली की तीर्थयात्रा का पुनीत अवसर जरूर मिल जा रहा है। आपके राज्य की आप जानिए। काम की गारंटी ने मुखियों को करोड़पति होने की गारंटी जरूर दे दी है और मजदूरों को या तो पता ही नहीं है कि उनका नाम मनरेगा में दर्ज है या तो उनको बैठे-बिठाए आधा ही पैसा मिल पा रहा है। शिक्षा के अधिकार का तो कहना ही क्या? इस पर तो अभी तक अमल शुरू हुआ ही नहीं है और शायद कभी होगा भी नहीं और अब आ गया है बिना किसी पूर्व तैयारी के एक और महान अधिकार भिक्षा का अधिकार। वास्तव में यह गरीबों के लिए भोजन की गारंटी नहीं है बल्कि वर्तमान परिस्थितियों में यह पीडीएस के जुड़े मंत्रियों,अधिकारियों,कर्मचारियों व दुकानदारों के करोड़पति होने की गारंटी है। क्या सोनिया एंड फेमिली बताएगी कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी जनवितरण प्रणाली के माध्यम से यह कानून कैसे पारदर्शी तरीके से लागू हो पाएगा? क्या वे लोग जल्दीबाजी करके यह नहीं चाहते हैं कि इस योजना का 12 आना से भी ज्यादा बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचारियों की जेब में पहुँच जाए?
मित्रों, जब देश की बीपीएल जनता को पहले से ही हर महीने सस्ता अनाज दिया जा रहा है तो फिर नाम बदलकर उसी तरह की नई योजना लाने का क्या प्रयोजन? यह तो वही बात हुई कि एक ही बार बनी हुई सड़क का शिलापट्ट बार-बार बदल-बदलकर अलग-अलग नेता बार-बार उद्घाटन करें। विपक्ष तो विपक्ष खुद कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों के हाथ-पाँव भी खजाने की बुरी सेहत को देखते हुए इस योजना के बारे में सोंचकर ही फूले जा रहे हैं। मगर सोनिया गांधी एंड फेमिली को देश और देश के खजाने से क्या लेना-देना? उनको तो बस एक गेम चेंजर प्लान चाहिए जो अकस्मात् जनता की याद्दाश्त को इस कदर धुंधली कर दे कि वे उनकी सरकार में हुए सारे रिकार्डतोड़ महाघोटालों को भुला दें। वे यह भी भूल जाएँ कि कांग्रेस ने अपनी आवारगी से किस तरह उनकी घरेलू पारिवारिक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी चमकते चांद से टूटा हुआ तारा बना डाला है और एक बार फिर से उसकी झूठ और फरेब की काठ की हाँडी में सत्ता की परम स्वादिष्ट खिचड़ी को वोटों की मीठी आँच देकर पक जाने दें।

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