Menu
blogid : 1147 postid : 980

फिर से 62?

ब्रज की दुनिया
ब्रज की दुनिया
  • 707 Posts
  • 1276 Comments

मित्रों,हम भारतीयों की यह सन् 47 की ही आदत है कि हम इतिहास से सबक नहीं लेते और उसे बार-बार अपने-आपको दोहराने का मौका देते रहते हैं। चाहे पाकिस्तान का मुद्दा हो या आतंकवाद का या फिर कांग्रेस को सत्ता में लाने का,क्या सरकार और क्या जनता दोनों ने ही कभी इतिहास से सबक नहीं लिया। पाकिस्तान बार-बार हमारी पीठ में छुरा भोंकता रहता है फिर भी हम उसको गले लगाने के लिए हमेशा बेताब बने रहते हैं,आतंकी हमले होते रहते हैं परन्तु हम कोई एहतियाती उपाय नहीं करते और निश्चिंत होकर फिर से अगले हमले के इंतजार में लग जाते हैं। इसी तरह कांग्रेस पार्टी जब भी केंद्र में सत्ता में आती है दोनों हाथों से देश को लूटने,लुटाने,खाने और बेचने में लग जाती है फिर भी हम उसी को वोट देकर बार-बार देश को लूटने,लुटाने,खाने और बेचने का अवसर देते रहते हैं। अब तो विकीलिक्स के खुलासों से भी साबित हो चुका है कि नेहरू-गांधी परिवार शुरू से ही दलालों और देशद्रोहियों का परिवार रहा है।
मित्रों,हमारी चीन नीति भी हमारी इस चिरन्तन आदत का अपवाद नहीं है। हमने चीन के हाथों 1962 में जबर्दस्त धोखा खाया और हमें शर्मनाक पराजय से भी दो-चार होने पड़ा लेकिन हमने फिर भी सबक नहीं लिया। एनडीए की वाजपेयी सरकार तो स्थिति फिर भी ठीक थी लेकिन कांग्रेस पार्टी की वर्तमान सरकार ने तो चीन की तरफ से आँखें ही मूँद ली-मूँदहुँ आँख कतहुँ कछु नाहिं। इस सरकार ने पिछले नौ सालों में चीन को भारत की फैक्ट्री बन जाने दिया। हमारे उद्योगपतियों को चीन में उद्योग बिठाने की महामूर्खतापूर्ण छूट दे दी।परिणाम हुआ कि हमारे रसोईघर से लेकर शयनकक्ष तक में आज मेड इन चाईना का राज है। इस सरकार ने चीन से वस्तुओं की आमद पर भी कभी किसी तरह की रोक नहीं लगाई नतीजा यह हुआ कि हमारी मूल्यवान विदेशी मुद्रा चीन के खजाने में जाती रही और हमारा चीन के साथ और कुल व्यापार-घाटा नित नए रिकार्ड बनाता रहा।
मित्रों,आज हम अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में भी चीन से काफी पीछे छूट चुके हैं। पिछले नौ सालों में हमारे देश में सिर्फ घोटाले ही हुए हैं विकास नहीं के बराबर हुआ है जबकि इसी अवधि में चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। आज की तारीख में महाशक्ति अमेरिका भी उससे सीधी टक्कर नहीं ले सकता फिर भारत किस खेत की मूली है?
मित्रों,चीन ने पिछले कुछ वर्षों में भारत-चीन नियंत्रण रेखा पर सड़कों और रेल लाईनों का जाल बिछा दिया है,भारत के चारों तरफ के पड़ोसी देशों को अपने पक्ष में कर लिया है,शस्त्रास्त्र-उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है,विज्ञान और तकनीकी विकास में अग्रणी स्थान प्राप्त कर लिया है। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी की निर्लज्ज,घोटालेबाज और देशद्रोही सरकार के चलते हमारी अर्थव्यवस्था पातालगामी है,तमाम सुरक्षा-विशेषज्ञों और इस नाचीज द्वारा लाख सचेत करने पर भी इसने भारत-चीन नियंत्रण-रेखा पर न तो सड़कें ही बनाईं और न ही रेल लाईनें ही बिछाईँ फिर हमारे सैनिक मोर्चे पर सही समय पर या असमय पर पहुँचेंगे कैसे? आज अपने पड़ोसियों के साथ भी हमारे संबंध मधुर नहीं रहे हैं और पिछले 9 सालों में इन देशों में भारतीय रूपए के प्रभाव में लगातार कमी आई है। वहीं चीन ने इन सालों में इन देशों में भारी पूंजी निवेश किया है। यहाँ तक कि कुछ ही दिन पहले उसने हमारी आर्थिक राजधानी मुंबई में भी मेट्रो परियोजना में निवेश का प्रस्ताव रखा है। परिणामस्वरूप हमारे जो पड़ोसी मुल्क कभी हमारे भरोसेमंद दोस्त थे आज चीन की गोद में बैठकर हमें ही आँखें दिखा रहे हैं। पिछले नौ सालों में हमारी इस महाभ्रष्ट और निकम्मी सरकार ने भारत को शस्त्रास्त्रों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों को बिल्कुल तिलांजलि ही दे दी है और भारत को दुनिया का सबसे बड़ा हथियार उत्पादक बनाने के बदले सबसे बड़ा आयातक बना दिया है। इसके पीछे क्या कारण हैं यह वीके सिंह और एसपी त्यागी प्रकरण से और विकीलिक्स के खुलासों से पहले ही जगजाहिर हो चुका है।
मित्रों,आज सरकार के अन्य अंगों की तरह सेना के प्रत्येक अंग में भी भ्रष्टाचार इस कदर अपनी पैठ बना चुका है कि अगर चीन से आज की तारीख में लड़ाई होती है तो हमें तब आश्चर्य नहीं होना चाहिए जब हमारी सेना 1962 की ही तरह बिना लड़े ही मारी जाए,जब सैनिकों की बंदूकें और अन्य उपकरण युद्धभूमि में काम ही न करें और इस तरह हमें 1962 की तरह ही एक और शर्मनाक पराजय का मुँह देखना पड़े।
मित्रों,आप खुद भी हालात पर दृष्टिपात करके देख सकते हैं कि मतदान के दौरान की गई हमारी सिर्फ एक गलती ने किस तरह हमें फिर से 1962 में वापस लाकर खड़ा कर दिया है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि तब भी लड़ाई की शुरुआत घुसपैठ से ही हुई थी। शायद आपको भी याद होगा कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने कैसे अपनी शानदार विदेश नीति की बदौलत चीन को सिक्किम पर अपनी नीति और मानचित्र को बदलने के लिए बाध्य कर दिया था,कैसे भारत के तब के रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस ने शेर की तरह दहाड़ते हुए कहा था कि दूसरा पोखरण पाकिस्तान को ध्यान में रखकर नहीं किया गया है बल्कि भारत चीन को अपना प्रथम और सबसे बड़ा शत्रु मानता है। फिर कैसे मात्र नौ सालों में दहाड़ मिमियाहट में बदल गई? क्यों आज की भारत सरकार चीन तो क्या मालदीव और श्रीलंका के आगे भी लाचार और असरहीन है? कुछ ऐसी ही परिस्थितियों में छोटे-से जापान और वियतनाम ने तो चीन के आगे घुटने नहीं टेके और गोली का जवाब तुरंत गोली से दिया फिर हम क्यों व्यर्थ की बातचीत में समय जाया कर रहे हैं? हमें चीन में हजारों सालों से प्रचलित इस कहावत को कभी नहीं भूलना चाहिए कि युद्ध लड़कर तीव्रता से हजार मील हासिल करने से ज्यादा बेहतर है चुपके से दशकों में एक-एक ईंच करके धीरे-धीरे अपना सीमा विस्तार करना।
मित्रों,मैं बिना किसी लाग-लपेट के यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि आज भारत फिर से वर्ष 1962 के कगार पर खड़ा है। अगर आज चीन से युद्ध हुआ तो हमारी पराजय अवश्यम्भावी है और वह पराजय कदाचित 1962 से भी ज्यादा शर्मनाक होगी। उस समय तो चीन अमेरिका के डर से रूक गया था आज तो उसका वो डर भी जाता रहा है। वाजपेयी के वीजन 2020 को ठंडे बस्ते में डालने के लिए,गलत आर्थिक और विदेश नीति के लिए हमारी वर्तमान केंद्र सरकार तो दोषी है ही इस सरकार को लगातार दो-दो बार चुनने के लिए उससे कहीं ज्यादा दोषी स्वार्थी जनता स्वयं है और हम अपनी इस जिम्मेदारी से किसी भी स्थिति में नहीं बच सकते-जैसी करनी वैसी भरनी।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh