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नीतीश कुमार विकास पुरूष या विनाश पुरूष

ब्रज की दुनिया
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मित्रों,इन दिनों नीतीश बनाम मोदी की चर्चा खूब जोरों पर है। कुछ लोग दोनों के कथित विकास-मॉडल की तुलना करने में लगे हुए हैं। ऐसा करनेवाले वे लोग हैं जो जानते ही नहीं हैं कि नीतीश कुमार ने बिहार को क्या दिया है और बिहार के किन-किन क्षेत्रों को विनष्ट कर दिया है,बिहार से क्या-क्या छीन लिया है। बिहार की हकीकत को सिर्फ वही समझ सकता है जो बिहार में रह कर इसका प्रत्यक्ष अनुभव करता हो वरना मीडिया के माध्यम से बिहार की वास्तविकता को जानना और समझना असंभव है क्योंकि नीतीश कुमार ने मीडिया को ही खरीद लिया है।
मित्रों,पहली बात कि नीतीश जब बिहार के मुख्यमंत्री बने थे तब बिहार पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था और उसकी विकास-दर लगभग शून्य थी। इसलिए जो भी सड़कों और छोटे पुलों के बनने से विकास हुआ विकास-दर काफी तेज दर्ज हुई। जब भी कोई रूकी हुई गाड़ी चलेगी तो भले ही उसकी गति अन्य पहले से ही तेज गति से चल रही गाड़ियों की तुलना में काफी कम हो उसका त्वरण तो ज्यादा रहेगा ही। हम सभी जानते हैं कि 0 किमी/घंटे की रफ्तार से चल रही गाड़ी की गति को 20 या 40 किमी/घंटे पर ले जाना आसान है लेकिन 200 किमी/घंटे की रफ्तार को 205 करना भी बहुत मुश्किल होता है। बिहार जहाँ 0 से 20-40 पर पहुँचा है वही गुजरात 200 से 205 पर फिर भी लोग पागलों की तरह बिहार के विकास-मॉडल को गुजरात के विकास-मॉडल से ज्यादा महान साबित करने में लगे हुए हैं। जबकि नीतीश कुमार खुद भी अपने मुँह से सैंकड़ों बार यह कह चुके हैं कि इसी विकास-दर से अगर बिहार लगातार 25 सालों तक विकास करता रहा तब जाकर वह प्रति व्यक्ति आय के मामले में राष्ट्रीय औसत पर पहुँचेगा।
मित्रों,बिहार में जो लोग रहते हैं वे जानते हैं कि नीतीश ने वास्तव में बर्बाद बिहार को और भी बर्बाद करके रख दिया है। बिहार में ऐसा कोई भी महकमा नहीं जो ठीक काम कर रहा हो। बिहार में दर्ज होनेवाले एफआईआर इस बात के गवाह हैं कि बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति एक बार फिर से बिगड़ गई है। फिर से बिहार का अपहरण-उद्योग चालू हो गया है अंतर इतना ही है कि बिका हुआ मीडिया अब इस तरह के मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं दिखाता बल्कि दबा देता है। बिहार में घुसखोरी चरम पर है, लोग आज भी अपराधियों से कम पुलिस से ज्यादा डरते हैं, पुलिस थानों के देखकर लोगों का सिर श्रद्धा से नहीं झुकता बल्कि मुँह से स्वतःस्फूर्त भाव से गालियाँ निकलने लगती हैं,आरटीआई फेल है,आरटीआई कार्यकर्ताओं को जेल है,ग्राम-प्रधान एक ही कार्यकाल में खाकपति से करोड़पति बन जा रहे हैं,इन्दिरा आवास नहीं बनता लेकिन इस मद में पैसे जरूर खर्च हो जा रहे हैं,दूध की गंगा के बदले बिहार में शराब की नदी बह रही है,गाँव-गाँव में शराब की दुकानें खुल गई हैं और नीतीश कुमार फरमाते हैं कि शराब नहीं बेचेंगे तो विकास के लिए पैसा कहाँ से आएगा,इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि वे इन दुकानों से माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शराब उपलब्ध करवा रहे हैं, फिर भी बिहार में हर महीने दर्जनों गरीब-गुरबा जहरीली शराब पीने से मर रहे हैं। बिहार के स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षक नहीं हैं। बिहार के प्राथमिक विद्यालयों में आज भी ज्यादातर ऐसे शिक्षक नौकरी कर रहे हैं जिनकी नियुक्ति नीतीश के राज में हुई है और जिनके प्रमाण-पत्र नकली हैं अथवा जो ग्राम-प्रधानों के भ्रष्टाचार के कारण नौकरी पा गए हैं। बिहार सरकार में आज भी बिना रिश्वत लिए नौकरी नहीं दी जाती। ताजा प्रमाण बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ली गई सचिवालय सहायक की परीक्षा है जिसमें पैसे लेकर परीक्षा के बाद कॉपियों में हेराफेरी की गई फलस्वरूप पटना उच्च न्यायालय ने नियुक्ति पर रोक लगा दी है। बिहार के आयोगों के घुसखोर सदस्य आज भी इतने अयोग्य हैं कि वे 100-150 त्रुटिरहित प्रश्न भी नहीं चुन पाते। बिजली के बारे में पिछले 8 सालों से सिर्फ दावे और वादे ही किए जा रहे हैं, दलित मंत्री अपने दलित नौकर को अपनी गाय द्वारा बुरी तरह से घायल कर देने पर उसका ईलाज नहीं करवाता बल्कि मरने के लिए उसके घर पर फेंकवा देता है और फिर भी मंत्री बना रहता है। नीतीश शासन-काल में बिहार में एक भी उल्लेखनीय वृहत-उद्योग नहीं लगा है। बिहार में सारी योजनाएँ भ्रष्टाचार की शिकार हैं। बिहार के डॉक्टरों ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की राशि को हड़पने के लिए हजारों कुंआरी कन्याओं के गर्भाशय निकाल लिए फिर भी नीतीश मूकदर्शक बने हुए हैं। मनरेगा में काम करनेवाले 90 प्रतिशत मजदूर फर्जी हैं,जाँच में यह साबित भी हो चुका है फिर भी नीतीश मूकदर्शक हैं। पटना में नाली-निर्माण शुरू हुए पाँच साल से ज्यादा हो गए लेकिन निर्माण पूरा नहीं हुआ है। नीतीश की धर्मनिरपेक्षता भी दिखावा है। जब फारबिशगंज में उनकी पुलिस मुसलमानों का संहार कर रही थी तब नीतीश कहाँ थे?
मित्रों,कुल मिलाकर नीतीश शासन ऊपर से तो फिटफाट है मगर भीतर से सिमरिया घाट है। जैसे दूर के ढोल सुहावन लगते हैं वैसे ही हमारे कुछ मित्रों को नीतीश का शासन अद्वितीय और अभूतपूर्व लग रहा है। बिहार में नीतीश के समय हुआ विकास बस इतना ही है कि सड़कों के गड्ढे समाप्त हो गए हैं,नई सड़के बनीं हैं और छोटे-मोटे सैंकड़ों पुल बनाए गए हैं,बस। हाँ नीतीश बातें जरूर बड़ी-बड़ी कर रहे हैं। वे जनता को जरूर सब्जबाग दिखा रहे हैं। नीतीश कुमार ने बिहार की शिक्षा का पूर्ण विनाश कर दिया है और पूरे बिहार को शराबी बना दिया है। यह शराब से मिलने वाला कर ही है जिससे बिहार का खर्च चल रहा है। अगर किसी प्रदेश का विनाश कर देना ही विकास है तो मानना ही पड़ेगा कि नीतीश ने बिहार का अद्भुत विकास किया है। तब निस्सन्देह उनके समय में बिहार का अभूतपूर्व विकास हुआ है। अगर बिहार कर्मचारी चयन आयोग को बिहार कुर्मी चयन आयोग बना देना है विकास है तो निश्चित रूप से बिहार नीतीश के समय तीव्र विकास के पथ पर अग्रसर है।

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