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गूंगी जनता, बहरे हाकिम और अरविन्द केजरीवाल

ब्रज की दुनिया
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मित्रों,ज्यादा दिन नहीं हुए जब अरविंद केजरीवाल ने टीम अन्ना की घोषित नीति के विपरीत एक नए राजनीतिक दल के गठन की घोषणा की थी और मैंने उन्हें बाँकी नेताओं जैसा धोखेबाज और सत्तालोलुप मानकर उनका सख्त विरोध और आलोचना की थी। बाद में जब मैंने खुद को अरविंद के स्थान पर रखकर उनके समक्ष उपस्थित विकल्पों पर विचार किया तो लगा कि अरविंद के सामने और कोई विकल्प था ही नहीं। आखिर वे कब तक यूँ ही अनशन पर अनशन किए जाते जबकि देश का कोई भी राजनीतिक दल उनकी मांगों पर कान तक देने को तैयार नहीं था। वैसे भी अगर किसी गंदे तालाब को साफ करना है तो हमें उसमें उतरना तो पड़ेगा ही। अब जबकि अरविन्द राजनीति के अखाड़े में उतर ही चुके हैं तो क्यों नहीं हमें उनका समर्थन करना चाहिए? हम सिर्फ देश की भलाई चाहते हैं और मुझे नहीं लगता है कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में हमारे समक्ष उनसे अच्छा कोई विकल्प है भी। हमें उनका साथ देना चाहिए तो क्यों देना चाहिए? हमें अरविन्द केजरीवाद का साथ इसलिए देना चाहिए क्योंकि सिर्फ कोरे नारे नहीं हैं उसकी झोली में। उसके पास भारत के नवनिर्माण का पूरा खाका है जो अन्य दलों के पास नहीं है.उनके अलावा ऐसा कोई दल या नेता नहीं जो समग्रता में यथास्थिति को बदलने का वादा भी करता हो और माद्दा भी रखता हो। उनके अलावा ऐसा कोई दल या नेता नहीं जो जनता के दुःख को अपना दुःख समझे और उसके लिए आंदोलन करे,लड़े। आज का सत्ता पक्ष तो आर्थिक-सुधारों के नाम पर देश को देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हाथों बेच ही रहा है आज का विपक्ष भी मतिभ्रष्ट और पथभ्रष्ट है। आज का विपक्ष अनशन नहीं करता,धरने पर नहीं बैठता.एसी से बाहर आते ही उसके नेताओं को गर्मी लगती है इसलिए वह सिर्फ पूर्णवातानुकूलित संसद में हंगामा करता है और टीवी पर बयान देता है.भ्रष्टाचार और अर्थव्यवस्था पर उसकी नीतियाँ बिल्कुल वही हैं जो सत्ता पक्ष की हैं। आज देश के साम्यवादी चिथड़ा ओढ़कर घी पी रहे हैं। हर कंपनी में यूनियन लीडर प्रबंधन से मिले हुए हैं और इस तरह मजदूरों के हितों का सौदा किया जा रहा है। आम आदमी परेशान है कि वह किसे वोट दे? बाँकी सबके सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। हमें क्यों यकीन करना चाहिए अरविंद केजरीवाल पर क्योंकि हमारे सामने और कोई विकल्प ही नहीं है? क्योंकि अगर हम सचमुच देश का और आम आदमी का भला चाहते हैं तो हमारे सामने विकल्पहीनता की स्थिति है। क्योंकि बाँकी जो भी विकल्प हैं उनको हम पहले भी आजमा चुके हैं। हमें अरविन्द केजरीवाद का साथ क्यों देना चाहिए क्योंकि वह सिर्फ बातें नहीं बनाता उस पर अमल भी करता है,लड़ता भी है,वह जेल जाने से नहीं डरता,वह डॉइंग रूम राजनीति नहीं करता। क्योंकि बाँकी दल भ्रष्टाचार के दलदल हैं और अरविंद की पार्टी नए विचारों,नई सोंच और नई ताज़गी से ओतप्रोत है। अगर उसको उद्देश्य प्राप्ति में आधी सफलता भी मिल जाए तो वह अपने आपमें किसी क्रांति से कम नहीं होगी। हमें अरविन्द केजरीवाद का साथ क्यों देना चाहिए क्योंकि बाँकी दल देश को बेचने में लगे हैं और अरविंद ने अब तक ऐसा नहीं किया है। क्योंकि अरविन्द सिर्फ दिखावे के लिए दलित लीलावती या कलावती की झोपड़ी में नहीं जाते हैं बल्कि वे जाते हैं उसका दुःख बाँटने और उसकी लड़ाई लड़ने,उसके घर की कटी हुई बिजली को जोड़कर जेल जाने। क्योंकि अरविन्द न तो नेता लगते हैं और न ही अभिनेता की तरह व्यवहार करते हैं बल्कि वे हमें अपने बीच के लगते हैं,अपने बीच से लगते हैं।
मित्रों,हमें अरविन्द केजरीवाद का साथ क्यों देना चाहिए क्योंकि बाँकी दलों के पास आम आदमी और गरीबों के लिए योजनाएँ तो हैं लेकिन उस भ्रष्टाचाररूपी कालियानाग को नाथने का जज्बा नहीं है जो कि खजाने से निकले 1 रुपये का 90 पैसा गड़प कर जाता है.हमें अरविन्द केजरीवाद का साथ क्यों देना चाहिए क्योंकि जहीं बाँकी सारे दलों और नेताओं की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है और अरविंद का ध्यान आज भी इस देश की व्यवस्था को बदलने पर है.क्योंकि वह जाति-पाति और धर्म-मज़हब की नहीं बल्कि एक आम हिंदुस्तानी की बात कर रहा है.कब तक हम चुके हुए और आजमाए हुए,भ्रष्ट सिद्ध हो चुके प्यादों पर दाँव लगाते रहेंगे और क्यों?क्यों??? हम कब तक यथास्थितिवादी दलों और नेताओं को अपना मत-दान करते रहेंगे और क्यों? हो सकता है कि अरविन्द भी भविष्य में भ्रष्ट निकले लेकिन हो तो इसका उल्टा भी सकता है और तब अपने बिगड़े हुए भविष्य के लिए कौन दोषी होगा? हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि हम जैसा होते हैं हमें सरकार और शासन भी वैसा ही मिलता है-यू गेट द गवर्नमेंट यू डिजर्व। इसलिए आइए और अरविंद का साथ दीजिए,उनका हौसला बढ़ाईए और हर तरह से उनका हाथ मजबूत करिए। जय हिंद।।।

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