- 707 Posts
- 1276 Comments
मित्रों,इस सरकार ने अन्ना को पड़ोसी देश पाकिस्तान समझ लिया है जिसके साथ सालोंभर खुले और सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत चलती रहती है और नतीजा कुछ भी नहीं निकलता.अगर सरकार आमरण अनशन पर बैठे हुए अन्ना के साथ इस तरह की बातचीत करना चाहती है तो इसका साफ़ मतलब है कि अन्ना जियें या मरें इससे उसका कुछ भी लेना-देना नहीं है.वैसे भी मरता कौन नहीं है?जो आया है उसे एक-न-एक दिन जाना ही है.अन्ना की जिंदगी तो कुछेक राजनेताओं को छोड़कर पूरे देश के लिए एक मिसाल रही ही है और अगर वर्तमान अनशन के दौरान उनकी मौत हो जाती है तो मौत भी मिसाल बन जाएगी.अब शायद ऐसा अवश्यम्भावी है.केंद्र सरकार और कांग्रेस पार्टी के रूख से नहीं लगता कि उन्हें भ्रष्टाचार को समाप्त करने की कोई जल्दीबाजी है.बल्कि ४२ साल तक इस विधेयक के लटके रहने के बावजूद उन्हें तो यही लगता है कि हमें किसी तरह की जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए.
मित्रों,क्या आपने कभी यह सोंचा है कि अगर राहुल गांधी के अनुसार समाज के लिए खतरनाक बन चुके अन्ना की अनशन के दौरान मौत हो जाती है तो देश की क्या हालत हो सकती है?वैसे अभी तो यह परिकल्पनात्मक प्रश्न है लेकिन इतना तो निश्चित है कि तब जो कुछ भी देश में होगा उसकी कांग्रेसियों के पूर्वजों ने भी कल्पना नहीं की होगी.सबकुछ अप्रत्याशित होगा.जनता तब महात्मा गांधी पथ को छोड़कर शिवाजी मार्ग पर आ जाएगी और शासन की बागडोर भ्रष्ट राजनेताओं के हाथों से सीधे अपने हाथों में ले लेगी.तब न तो लोकतंत्र का कथित प्रहरी संसद रहेगा और न ही संसद की दुहाई देनेवाले भ्रष्टाचारी सत्ता में रह जाएँगे;कहाँ रहेंगे या रहेंगे भी कि नहीं कह नहीं सकता.
Read Comments