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मित्रों,कुछ नादान कहते हैं कि मुम्बई की बरसात का कोई भरोसा नहीं है.यही बात कुछ लोग दिल्ली,कोलकाता या अपने गृहनगर के बारे में कहते हैं.बरसात का भरोसा नहीं है तो क्या हुआ;प्लास्टिक ले लो,छाता ले लो और अगर इस महंगाई में भी कुछ ज्यादा ही फालतू पैसे जेब में पड़े हैं तो रेनकोट ले लो.माना कि जलवायु-परिवर्तन के बाद बरसात और भी ज्यादा गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाने लगी है लेकिन आज के फैशन के युग में भरोसे के लायक है ही क्या?फिर बेचारी बरसात को ही क्यों अकेले दोषी ठहराया जाए?शेयर बाजार का सूचकांक,मुद्रास्फीति यहाँ तक कि महाबली अमेरिका की शाख का भी भरोसा नहीं.इस भ्रष्ट-युग में सब-के-सब छुई-मुई की तरह नाजुक और महाकवि नागार्जुन के दुखहरण मास्टर के मिजाज की तरह गैरभरोसेमंद हो गए हैं.लेकिन गिनीज बुक ऑफ़ यूनिवर्स रिकार्ड तो कुछ और ही कहता है.उसके अनुसार तो इस ब्रह्माण्ड में अगर कोई चीज सबसे कम भरोसेमंद है तो वह है भारतीय नेताओं का स्वास्थ्य.हमारे ज्यादातर नेताओं का स्वास्थ्य कृष्ण जन्मस्थान में जाने के बाद ख़राब हो जाता है.आपको शायद याद होगा कि लालूजी जब हजारों करोड़ का चारा हजम करने के बाद गरीब रथ (रिक्शा) पर सवार होकर जेल के दौरे पर गए थे तब उनको अचानक दिल की बीमारी हो गयी थी.बार-बार अस्पताल में भर्ती हुए;अस्पताल भी कोई ऐरा-गैरा नहीं;पांच सितारा.ईधर वे जेल से बाहर निकले और उधर उनके लाल-टमाटर सरीखे जिस्म से दिल की बीमारी भी रफूचक्कर हो गयी.मतलब यह कि उन्होंने यह बीमार होने का ड्रामा सिर्फ इसलिए किया था जिससे कि वे सी.बी.आई. रिमांड पर जाने से और यू.एन.विश्वास के हाथों से मुर्गा खाने से बच सकें.
मित्रों,बाद में बिहार के कई अन्य नेता भी जब-जब जेल गए;बीमार पड़ गए और अस्पतालों में दरबार लगाने लगे.किसी को दिल की बीमारी हो गयी तो किसी का रक्तचाप हिचकोले खाने लगा.हाँ,नेताओं की बीमारी के मामले में अभी भी एक कमी बड़ी शिद्दत से महसूस की जा रही थी कि अबतक जेलयात्रा पर गए हमारे देश के किसी भी कर्णधार को दिमाग की बीमारी नहीं हुई थी.इस क्षेत्र में सूखा लम्बे समय तक चला.सौभाग्यवश अब जाकर समाप्त हुआ है और इसे ख़त्म करने के लिए भारत की सवा अरब गूंगी,बहरी और अंधी जनता की ओर साधुवाद के पात्र हैं भारत के सबसे बड़े खिलाडी सुरेश कलमाड़ी.इन बेचारे को हवालात में पहुँचते ही लॉन्ग टर्म मेमोरी लोंस की बीमारी हो गयी है.इन्हें बांकी तो सबकुछ याद है लेकिन सीडबल्यूजी घोटाला या उससे जुडी बातें बिलकुल भी याद नहीं है.यानि इनके सी.पी.यू. से सारी बातें डिलीट नहीं हुई है सिर्फ वही कुछ डिलीट हो गया है जिसका सम्बन्ध घोटाले से था.इससे पहले इस तरह की बीमारी पूरी दुनिया में न तो कभी सुनी गयी थी और न ही देखी ही गयी थी.जाहिर है इस नई बीमारी और इसके सब्जेक्ट (कलमाड़ी) पर गंभीरता से शोध करने की आवश्यकता है.
मित्रों,इन दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी भी कथित तौर पर गुप्त रूप से बीमार हो गयी हैं और उन्होंने कथित रूप से भारत के बजाए अमेरिका के चिकित्सकों पर विश्वास जताया है.उन्हें कौन-सी बीमारी थी और उसका ईलाज अतुल्य भारत में है भी या नहीं सब रहस्य के परदे में यत्नपूर्वक ढंककर रखा गया है.कहीं सोनिया जी को घोटालों के शोर के डर से कड़कड़हट की बीमारी तो नहीं हो गयी है.दरअसल कड़कड़हट की बीमारी हमारे गाँव में बिदेसिया के लौंडे को हुई थी जब वह सौतेली माँ का भावपूर्ण किरदार निभा रहा था.उसने अपने बिछावन के नीचे खपड़ा बिछा लिया था जिससे जब भी वो करवट लेता कड़कड़ की आवाज आती.उसने धन देकर वैद्य को भी अपनी ओर मिला लिया था जिससे उसने बीमारी का ईलाज उसके सौतेले बेटे की कलेजी खाना बता दिया था.खैर,इतना तो निश्चित है कि सोनिया जी जेल नहीं जाने जा रही हैं.यह सुअवसर अगर मिलेगा भी तो मनमोहन सिंह को क्योंकि सोनिया जी किसी भी जिम्मेदार पद पर नहीं हैं.वे तो उसी तरह सत्ता का निर्भय आनंद ले रही हैं जैसे १७६५ से १७७२ के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल में लिया था.शासन भी किया और उसकी जिम्मेदारी भी नहीं ली.अगर हम राजनीतिक दृष्टि से देखें तो उनके लिए इस समय बीमार हो जाना दो दृष्टियों से मुफीद था;पहला उनका पूरा परिवार इस खतरनाक समय में संसद में दिखने की शर्मिंदगी उठाने से बच गया और दूसरा देश के भोले-भाले लोगों का ध्यान भ्रष्टाचार और कमजोर लोकपाल से हटकर उनके स्वास्थ्य की ओर चला गया.उनकी रहस्यमय बीमारी की सच्चाई क्या है क्या कभी सामने आ भी पाएगा,शायद कभी नहीं!
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