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कृपालु,दीनदयाल,गरीबनवाज राहुल बबुआ

ब्रज की दुनिया
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rahul

मित्रों,भारत की सुपर प्राइम मिनिस्टर इटली से आयातित राजमाता सोनिया गाँधी की आखों के तारे राहुल बबुआ जबसे राजनीति में आए हैं तभी से कृपालु,दीनदयाल,गरीबनवाज बने हुए हैं.जहाँ कहीं भी किसानों,दलितों और मुसलमानों पर प्रदेश सरकार डंडा-गोली चलवाती है राहुल बबुआ तुरंत वहां पहुँच जाते हैं.इस दौरान कुछ देर झोपडिया में आराम करते हैं चटाई बिछाकर.अगर चटाई नहीं मिले तो खटिया से भी काम चला लेते हैं.कभी-कभी तो रातभर के लिए खटिया खाली नहीं करते हैं चाहे घरवालों को जमीन पर ही क्यों न सोना पड़े.
मित्रों,राहुल बबुआ की संवेदना का जवाब नहीं.बड़े ही जागरूक इन्सान हैं.जिस प्रदेश में उनकी खुद की सरकार होती है वहां लाख पुलिसिया अत्याचार,अनाचार,बलात्कार हो जाए वे नहीं फटकते.फटे में पांव वे तभी डालते हैं जब प्रदेश में विपक्षी दल की सरकार हो.हाँ,वे पीड़ितों-गरीबों पर कृपा करते समय एक और बात का भी ख्याल रखते हैं कि उक्त प्रदेश में चुनाव नजदीक है या नहीं.चुनाव अगर निकट होता है तब हो सकता है कि राहुल बबुआ पीड़ितों पर दोबारा भी कृपा करें  अन्यथा एक बार के दौरे से ही बबुआजी की संवेदना तृप्त हो जाती है.
मित्रों,अभी उत्तर प्रदेश में चुनाव निकट है और ऐसे में हिटलरी मिजाज वाली मायावती की सरकार ने भट्ठा परसौल में अत्याचार की सारी हदें पर कर दीं.ऐसे में लाजिमी था कि राहुल बबुआ उपरोक्त गाँव का दौरा करें और एक बार नहीं दो या दो से ज्यादा दफा करें.इसी बीच बबुआजी ने बिहार के फारबिसगंज में पुलिस फायरिंग में मारे गए मुसलमानों के परिजनों का दर्द भी बांटा.लेकिन चूंकि बिहार में अभी चुनाव दूर है इसलिए मुझे नहीं लगता कि वे दोबारा वहां की जनता पर निकट-भविष्य में कृपावृष्टि करनेवाले हैं.आप सभी जानते हैं कि इस समय बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों प्रदेशों में विपक्षी दल की सरकार है.इसी तरह की घटनाएँ महाराष्ट्र में लगातार नियमित अन्तराल पर होती रहती हैं लेकिन चूंकि क्योंकि वहां राहुल बबुआ की पार्टी सत्ता में है वे नहीं जाते पीड़ितों का दर्द बाँटने.अपने आदमी द्वारा किया गया अत्याचार अत्याचार थोड़े ही होता है.वैदिक हिंसा हिंसा न भवति;वह तो दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन अपरिहार्य होता है.उनकी माताजी द्वारा रिमोट संचालित केंद्र सरकार की पुलिस ने रामलीला मैदान में आधी रात में सोये हुए वृद्ध-बीमार लोगों पर लाठियों-गोलियों-अश्रुगैस की बरसात कर दी;लोकतंत्र की शवयात्रा निकाल दी लेकिन राहुल बबुआ का मन थोडा-सा भी नहीं पसीजा.नहीं गए अंग-भंग हुए लोगों को अस्पताल में देखने,उनका दुःख-दर्द बाँटने.जाते भी कैसे,यह अपने लोगों की शरारत जो थी.लोकतंत्र की हत्या तो तभी होती है जब हत्यारी विपक्षी दल की सरकार हो.अपने लोगों पर तो राहुल बबुआ बड़े कृपालु हैं.कुछ भी गलत कर जाए तो बचपना समझकर आँखें मूँद लेते हैं.
मित्रों,तो ये है अपने कृपालु,दीनदयाल,गरीबनवाज ४१ वर्षीया राहुल बबुआ की संवेदनशीलता की हकीकत.आप समझ गए होंगे कि उनकी संवेदनशीलता सिर्फ वोट के लिए है उसका गरीबों व पीड़ितों के आंसुओं से कुछ भी लेना-देना नहीं है.अगर लेना-देना होता तो वे न तो पीड़ितों के प्रति भेद का भाव रखते और न ही पीड़कों को लेकर.करें भी तो क्या बेचारे अपने नायाब दिमाग से तो कुछ करते नहीं हैं जैसी सलाह उनके खानदानी चाटुकारों ने दी बबुआ ने वैसा ही कर दिया.राजनीति तो उनके खून में होना चाहिए फिर न जाने क्यों वे पिछले कई वर्षों से राजनीति का ककहरा ही सीखने में लगे हैं.ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन भी जल्दी ही आएगा जब जनता उनके ककहरा सीखने का इंतजार करते-करते थक जाएगी और फिर से कांग्रेस पार्टी विपक्ष की अँधेरी सुरंग में चली जाएगी.जल्दी सीखिए कांग्रेसी युवराज-क का कि की कु कू बादाम,के कै को कौ कं कः राम.क का कि की………….

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