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सी.बी.आई. का गठन १९४१ में अंग्रेजों ने भ्रष्टाचार को रोकने के उद्देश्य से किया था लेकिन आजादी के बाद इंदिरा युग में इसका दुरुपयोग धड़ल्ले से शुरू हो गया.दरअसल सी.बी.आई. का काम भ्रष्टाचारियों को पकड़ना और सजा दिलवाना नहीं है वास्तव में उसका काम ऊंची रसूखवाले भ्रष्टाचारियों को कानून से बचाना है.उसे अगर हम सरकारी कुत्ता कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.जैसे कुत्ते मालिक के प्रति वफादार होते हैं उसी तरह यह सी.बी.आई. भी केंद्र सरकार के प्रति वफादार है.वह उसके इशारे पर ही भौंकती है और उसी के इशारे पर काटती है या फ़िर चुप्पी लगा जाती है जैसे इसने टाईटलर और क्वात्रोची को केंद्र के इशारे पर बरी करवा दिया वहीँ नरेन्द्र मोदी सरकार के पीछे नहा धोकर पड़ गई है.निठारी कांड और आरुषी हत्याकांड को इसने कुछ इस तरह उलझाया कि अब सुलझाना संभव ही नहीं रहा. यह केंद्र की कई तरह से संसद में बहुमत जुटाने में सहायता भी करती है.माया मेमसाब अगर पटरी पर नहीं आ रही है तो सी.बी.आई. को आगे कर दो या फ़िर लालू भैया को पटरी पर लाना है तब सी.बी.आई. ही उन्हें रास्ते पर लाने का काम करती है.कई बार सी.बी.आई. को स्वायत्त बनाने की बात आई.लेकिन बात बात से आगे नहीं बढ़ पाई.कोई भी दल केंद्रीय सत्ता में आते ही इस मुद्दे को रद्दी की टोकरी में डाल देता है, कौन चाहेगा कि कुत्ता शेर बन जाए इस तरह तो खुद सत्ताधारी दल के नेता भी खतरे में आ जायेंगे.
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