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मर्ज़ बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की

ब्रज की दुनिया
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cbi1यह कहावत पुराने ज़माने में शायद किसी वैद्य ने किसी न ठीक न होने वाली बीमारी के ईलाज के दौरान परेशान होकर कहा होगा.लेकिन आदमी को होनेवाली सभी पुरानी बिमारियों का ईलाज तो ढूँढा जा चुका है.कुछ नई बीमारियों पर भी शोध कार्य जारी है.मगर कोई देश अगर किसी लाईलाज बीमारी से ग्रस्त हो जाए तो.हमारा देश भी एक बहुत-ही पुरानी बीमारी से ग्रस्त है और जैसे-जैसे दवा की डोज़ बढ़ाई जा रही है वह बीमारी भी बढती जा रही है.मुग़ल शासन के समय भी भ्रष्टाचार था लेकिन सब्जी में नामक की तरह इसकी मात्रा काफी कम थी.अंग्रेजों ने येन-केन-प्रकारेण भारत को लूटा क्योंकि वे लूटने के लिए ही आये थे.फ़िर भी भ्रष्टाचार अभी पूड़ी में तेल की तरह काफी कम थी.लोगबाग अब भी कानून और समाज से डरते थे.आजादी मिलने के बाद भ्रष्टाचार की नाली दिन-ब-दिन चौड़ी होती गई अब उसने महासागर का रूप ले लिया है.महासागर भी इतना बड़ा और गहरा कि जिसमें हमारा देश डूब भी सकता है.आजादी के बाद नेहरु और शास्त्री के समय तक भ्रष्टाचार का दानव नियंत्रण में था लेकिन महत्वकांक्षी इंदिरा गांधी के समय इसने संस्थागत रूप ग्रहण करना शुरू कर दिया.वैसे नेहरु के समय ही जीप घोटाला के नाम से पहली बार उच्चस्तरीय भ्रष्टाचार देश के सामने आया था.लेकिन तंत्र अब भी काफी हद तक स्वच्छ था.कम-से-कम हमारे शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व के बारे में आंख मूंदकर यह दावा किया जा सकता था.लेकिन इंदिरा जी ने राजनीति की समस्त मान्यताओं और परिभाषाओं को ही बदल कर रख दिया.भाई-भतीजावाद और घूसखोरी अब अपराध नहीं बल्कि कला बन गई.कुर्सी बचाने के लिए उन्होंने देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया.विपक्षी दलों के शासनवाले राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा देना तो जैसे उनके लिए रोजाना की बात थी.पूरे भारत में सत्ता का अब एक ही केंद्र बच गया.संवैधानिक निष्ठा के बदले आलाकमान के प्रति निष्ठा का महत्व ज्यादा हो गया.इंदिराजी का स्थान अब संविधान से तो ऊपर हो ही गया उनके कई चाटुकार तो उन्हें ही भारत भी मानने लगे.आपातकाल के बाद सत्ता तो विपक्ष के हाथों आ गई लेकिन भ्रष्टाचार पर कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा.इंदिराजी की हत्या के बाद उनके पुत्र १९८४ में सत्तासीन हुए.लेकिन न तो वे भारत को समझ पाए और न ही भारत उन्हें समझ पाया और जब तब ये दोनों एक दूसरे को समझ पाते राजीवजी की आयु ही समाप्त हो गई.इस बीच वी.पी. और चंद्रशेखर की सरकारों पर उस तरह तो भ्रष्टाचार के सीधे आरोप नहीं लगे जैसे राजीव गांधी की सरकार पर लगे थे लेकिन चंद्रास्वामी जैसे लोगों की बन जरूर आई.राजीव जी के समय बोफोर्स तोप घोटाला सामने आया और देश को पता चला कि लगभग सभी रक्षा खरीद में दलाली और कमीशनखोरी होती है.यानी अब हमारे देश की सुरक्षा भी भ्रष्टाचार के कारण खतरे में है.फ़िर केंद्र में आये नरसिंह राव जी जिनका अधिकतर समय उनके दफ्तर में नहीं बल्कि कोर्ट-कचहरी का चक्कर काटते बीतता था.हवाला कांड से लेकर पेट्रोल पम्प आवंटन घोटाला और दूरसंचार घोटाला तक कितने ही घोटाले राव साहब के समय सामने आये और समय की धूल के नीचे दबकर रह गए.किसी भी मंत्री को सजा नहीं हुई.पंडित सुखराम तो बाद में हिमाचल में किंग मेकर बनकर भी उभरे.इसी दौरान मंडल आयोग के रथ पर सवार होकर लालू दोबारा बिहार के मुख्यमंत्री बने.अचानक मुख्य परिदृश्य पर आगमन हुआ एक बेहद ईमानदार सी.बी.आई. अफसर यू.एन.विश्वास का.बिहार में रोज-रोज नए-नए घोटालों का पर्दाफाश होने लगा.चारा से लेकर अलकतरा तक लालू मंडली खा-पी गई.लालू जेल भी गए लेकिन हाथी पर सवार होकर मानों भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाना गौरव की बात हो.बाद में यू.एन.विश्वास के रिटायर हो जाने के बाद सी.बी.आई. भी सुस्त पड़ गई और कई बार तो ऐसा भी लगा कि वह लालू को सजा दिलाने के बदले उसे बचाने का प्रयास ज्यादा गंभीरता से कर रही है.वैसे भी वह अपने ६९ साल के इतिहास में आज तक किसी भी राजनेता को सजा कहाँ दिलवा पाई है? बाद में उत्तर प्रदेश की दलित मुख्यमंत्री मायावती का माया से लगाव के कई मामले भी उजागर हुए.लेकिन इससे उनके राजनीतिक भविष्य पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा बल्कि उनका वोट-बैंक और भी तेजी से बढ़ता गया और वे इस समय अकेले ही उत्तर प्रदेश में सत्ता चला रही हैं.इसी तरह लालूजी भी भ्रष्टाचार के मामले उजागर होने के बाद भी ८ साल तक सत्ता में बने रहे.सी.बी.आई. और अन्य भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां तो सरकारी हुक्म की गुलाम हैं लेकिन सबसे दुखद बात तो यह है कि जनता भी भ्रष्टाचार को मुद्दा नहीं मानती है और उनके बीच यह सोंच विकसित होती जा रही है कि ऐसा तो होता ही है.यह उदासीनता ही देश के लिए सबसे खतरनाक है क्योंकि जनता किसी के हुक्म की गुलाम नहीं है.किसी को सत्ता में पहुँचाना और सत्ता से निकाल-बाहर कर देना उनके ही हाथों में तो है.क्यों और कैसे एक भ्रष्ट नेता जाति-धर्मं के नाम पर जनता को बरगलाकर चुनाव-दर-चुनाव जीतता जाता है?बिहार में २००५ में नीतीश कुमार चुनाव जीते लेकिन रा.ज.द. सरकार के समय सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार इस चुनाव में मुद्दा नहीं था बल्कि वे इसलिए चुनाव जीते क्योंकि इस बार जातीय समीकरण उनके पक्ष में था.उन्होंने वर्षों से सो रहे निगरानी विभाग को जगाया और रोज-रोज भ्रष्ट कर्मी और अफसर रंगे हाथ पकड़े जाने लगे.लेकिन नीतीश भ्रष्टाचार पर प्रभावी प्रहार करने में अब तक असफल रहे हैं क्योंकि अब निगरानी विभाग के अफसर और कर्मी खुद ही घूस खाने लगे हैं.अब इन्हें कौन पकड़ेगा और कौन इनके खिलाफ जाँच करेगा?निगरानी की चपेट में आये कई कर्मी-अफसर घूस देते पकडे जाओ तो घूस देकर छूट जाओ का महान और स्वयंसिद्ध फार्मूला अपनाकर फ़िर से अपने पुराने पदों पर आसीन होने में सफल रहे हैं और फ़िर से भ्रष्टाचार में डूब गए हैं.नरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बिहार सरकार ने प्रत्येक जिले में लोकपाल की नियुक्ति करने का निर्णय लिया है लेकिन लोकपालों की ईमानदारी पर कौन ईमानदारी से नज़र रखेगा?लोकपाल भी भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए तो सरकार के सामने कौन-सा विकल्प बचेगा?कुल मिलाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ तंत्र बनाने या बढ़ाने से इस महादानव की सेहत पर कुछ भी असर नहीं आनेवाला.आवश्यकता है मजबूत ईच्छाशक्ति की.अगर सरकार दृढ़तापूर्वक चाह ले तो वर्तमान तंत्र से भी अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं.केंद्र सरकार ने इस बार के बजट में केंद्रीय सतर्कता आयोग के बजट में ही कटौती कर दी है.क्योंकि सरकार का मानना है कि भ्रष्टाचार पर लगाम लग ही नहीं सकता इसलिए उसने बुरा मत देखो की नीति अपना ली है.भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध में पहली और अंतिम उम्मीद सिर्फ जनता है क्योंकि वही किसी मुद्दे को मुद्दा बनाती है, किसी नेता को ताज पहनाती है और सत्ता के मद में चूर नेता को धूल में भी वही मिलाती है.समस्या यह है कि किसी भी राजनीतिक दल का दामन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इतना पाक-साफ नहीं है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रभावी तरीके से आन्दोलन खड़ा कर सके और चला सके.आप अब तक समझ गए होंगे कि भ्रष्टाचार की बीमारी से हमारा देश किस स्तर तक ग्रस्त हो चुका है.सबसे बड़ी चिंता तो यह है इस बीमारी का न तो कोई ईलाज ही ढूँढा जा रहा है और न ही देश को कोई दवा ही दी जा रही है. हाँ सरकारें ईलाज का ढोंग जरूर कर रही है.क्या आपके पास कोई नुस्खा या दवा है?अगर आपका जवाब हाँ में है तो फ़िर हमें भी बताईये न, छिपाने से तो यह बीमारी और भी बढ़ेगी और मरीज यानी हमारा देश कमजोर होगा.

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