आपने कई संस्कृतियों के नाम सुने होंगे.हड़प्पा संस्कृति,चीनी संस्कृति,मिस्री संस्कृति आदि.अब मैं कितने समाप्त हो चूँकि संस्कृतियों के नाम गिनाऊँ, सर्वकालिक और सार्वभौमिक तो बस एक ही संस्कृति है और वह है दलाल संस्कृति. कुछ साल पहले तक अपने देश में किसी को दलाल या दल्लाल कह देने पर मार का नहीं तो कम-से-कम गालियाँ सुनने का तो इंतजाम हो ही जाता था.पर वर्तमान भारत में यह शब्द गौरव और अभिमान का परिचायक ही नहीं अपितु पर्याय भी बन चुका है.गाँव में आप बिना दलाल के जमीन-जायदाद, मवेशी यहाँ तक कि फसल भी नहीं बेच सकते.यह पुरानों में ही अच्छा लगता है कि विश्व के संचालक भगवान विष्णु हैं और सर्वकष्टनिवारक श्रीगणेश हैं.आज तो एक ही कष्टनिवारक है और वह है दलाल.पहले जब यह व्यवसाय-मात्र था तब दलाल कहने से बुरा मानने का खतरा हो भी सकता था, आज बुरा मानने का प्रश्न ही नहीं! इस शब्द का अर्थ पूरी तरह से बदल चुका है.अब यह निंदा का नहीं प्रशस्ति का गुण धारण करता है. ‘हरि के हजार नाम’ की तरह दलालों के भी हजारों नाम हैं.किराये पर मकान चाहिए या जमीन खरीदनी है तो प्रोपर्टी डीलर, कम्पनियों के शेयर खरीदने हैं तो शेयर ब्रोकर.यहाँ तक की मंदिर जाएँ तो वहां भी ईश्वर और अपने बीच एक मध्यस्थ को पाएंगे यानि पुजारी.अब अगर आप पूछे की मंदिर में मध्यस्थ की क्या जरुरत?अरे भी भगवान आपकी भाषा थोड़े ही समझते हैं.वे भी उनकी भाषा समझते हैं. अब इन छुटभैये नेताओं की नादानी देखिये बोफोर्स-बोफोर्स चिल्लाते-चिल्लाते इनका गला बैठ रहा है.अरे नादानों, जब बिना दलाल के कोई अपनी भैंस तक नहीं बेच सकता तो फ़िर रक्षा-उपकरण निर्माता कम्पनियों की कोई ईज्जत है भी कि नहीं, आखिर दलाल नहीं रखने से उनकी ईज्जत नहीं चाटेगी क्या?वो तो भला तो पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जिन्होंने सिंह गर्जना करते हुए संसद में कहा कि स्वतंत्रता के बाद कोई भी रक्षा बिना दलालों की कृपा के संपन्न हुआ ही नहीं है. अब हरेक राजनेता दलालों की महिमा थोड़े ही समझता है.सरकार चलाना भी इतना आसान थोड़े ही होता है कि बिना दलाल के चल जाए.नहीं विश्वास होता है तो फ़िर चले जाइये किसी भी मंत्रालय में.आपको ढेर-सारे बड़े-बड़े संपर्कोंवाले पूर्व बेरोजगार,दलाली में शोधकार्य में पूरे मनोयोग से रत दलाल मिल जायेंगे.स्थानांतरण से लेकर पेंशन तक हर टेंशन की दवा है उनके पास.रेलवे ने तो ट्रेवल एजेंट नाम और पदवी देकर इस विधा को सम्मानित भी किया है.भारत का सबसे पुराना शेयर बाज़ार बम्बई स्टॉक एक्सचेंज जिस सड़क पर स्थित है वह तो पूरी तरह दलालों को ही समर्पित है.नाम है-दलाल स्ट्रीट.इस महान गली में रहनेवालों के नाम के साथ भी यह महान शब्द लगा होता है जैसे हितेन दलाल,जितेन दलाल आदि. अब मैं आपको अपने ऊंचे घराने के बारे में भी बता दूं.मेरे एक दूर के नाना थे वे बैल-भैस की दलाली करते थे.अन्य दलालों की तरह उनके पास भी एक ही जमापूंजी थी दिमाग.जिसका वे जमकर प्रयोग करते थे.क्या मजाल कि कोई ठेकेदार उनसे बिना पूछे स्कूल या कुएं में एक भी ईंट जोड़ दे.इतनी ईज्जत थी उनकी गावों में कि लोग उन्हें दलाल नहीं ‘दलाल साहेब’ कहकर पुकारते थे. कुल मिलाकर मित्रों भारत में इस समय कलियुग है.अर्थ प्रधान युग.इस महान युग का और ज्यादा समय व्यर्थ न गंवाते हुए मित्रों अगर अर्थ कमाना है तो जाइए दलाली करना सीखिए.अगर आपके पास एमबीए की डिग्री है तो आप इस काम तो पूरे प्रोफेशनल तरीके से कर सकते हैं.यहाँ भी तो मैनेज ही करना होता है.मैं इस रोजगार में आपके साथ फिफ्टी-फिफ्टी का पार्टनर बनाने को तैयार हूँ.
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments