Menu
blogid : 1147 postid : 46

जनवितरण प्रणाली:भ्रष्टाचार की नाली

ब्रज की दुनिया
ब्रज की दुनिया
  • 707 Posts
  • 1276 Comments

पूरा भारतवर्ष पिछले कुछ वर्षों से महंगाई से परेशान है.महंगाई से निपटने के लिए जनवितरण प्रणाली के नाम से पूरा-का-पूरा एक तंत्र काम करता है.इसके माध्यम से सरकार द्वारा जनता को सस्ते दरों पर सामान दिया जाता है.इसके लिए सरकार हजारों करोड़ रूपये की सब्सिडी देती है.लेकिन इस मन से भी तेज गति से बढती महंगाई के युग में सबसे दुखद बात यह है कि यह जनवितरण प्रणाली पूरी तरह से बेअसर साबित हो रही है.सरकार द्वारा दी जानेवाली अन्य सब्सिडियों की तरह इसमें दी जानेवाली सब्सिडी भी तंत्र चट कर जा रहा है और जनता के हाथ लगता है कुछ भी नहीं.यह प्रणाली अकस्मात भ्रष्ट हो गई हो ऐसा नहीं है.इसे भ्रष्टाचार का रोग लगा है धीरे-धीरे और अब स्थितियां इतनी बिगड़ चुकी हैं कि या तो केंद्र और राज्य सरकारों को इससे निबटने का उपाय ही नहीं सूझ रहा है या फ़िर वे यथास्थितिवादी है और सोंचती हैं कि जैसा चल रहा है चलने दो मेरा क्या जाता है?यह विभाग इतना भ्रष्ट हो चुका है कि भ्रष्ट विभागों की अगर कोई सूची बने तो बांकी विभाग काफी पीछे छुट जायेंगे.भ्रष्टाचार की यह नाली निकलती है जिला आपूर्ति अधिकारियों के दफ्तरों से.आप नई दुकान के लिए लाईसेंस लेने जाएँ तो मैं बांकी राज्यों की बात नहीं जानता लेकिन बिहार में आपसे अधिकतर जिला आपूर्ति कार्यालयों में ५० हजार से लेकर १ लाख रूपये तक की रिश्वत मांगी जाएगी.अब दुकानदार इस चढ़ावे की क्षतिपूर्ति कैसे करे, तो वह इकट्ठे दो-तीन महीनों का राशन बेच देता है.तो इस तरह होती है भ्रष्टाचार की इस दुकान की शुरुआत.पर भ्रष्टाचार के मार्ग पर उठा यह कदम दुकानदार बीच में रोक सकता है ऐसा भी नहीं है.इस गाड़ी में तो ब्रेक है ही नहीं.आपसे प्रत्येक महीने किरानियों और अधिकारियों की ओर से कुछ-न-कुछ रकम मांगी जाएगी अन्यथा दुकान का लाईसेंस रद्द होने का खतरा आपके सिर पर मंडराता रहेगा.जबसे अन्त्योदय योजना के तहत सब्सिडाइज्ड दर पर गेंहू और चावल दिया जाने लगा है, दुकानदारों की कमाई (अवैध) और भी बढ़ गई है.अधिकारयों की तरह वे भी लालची जो ठहरे.होता यह है कि बहुत से गरीब तो गरीबी के कारण अनाज लेने जाते ही नहीं हैं और ज्यादातर बार अनाज की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं होती.हर दो-तीन महीने में एक बार यह सारा का अनाज कालाबाजार में पहुँच जाता है.इतना ही नहीं कुछ यही हाल होता है किरासन तेल का भी.शहरों और महानगरों में उतना बुरा हाल नहीं है लेकिन गावों में जहाँ और भी ज्यादा गरीबी है वहां के अधिकतर डीलर ऐसा ही करते हैं.कुछ डीलरों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी हो गई है कि वे स्थाई संपत्ति यथा जमीन और मकान भी धड़ल्ले से खरीद रहे हैं.हालांकि इन डीलरों की गावों में कोई ईज्जत नहीं करता लेकिन इससे इनका क्या बिगड़ता है?मेरे पिताजी एक छोटे स्टेशन के स्टेशन मास्टर के बारे में बताते हैं कि वह जब ट्रेन स्टेशन पर आकर लगने को होती तब घंटी बजाता.लोग गिरते-पड़ते टिकट खिड़की की ओर दौड़ते.वह स्टेशन मास्टर सभी यात्रियों के कुछ-न-कुछ खुल्ले रख लेता और कहता कि खुल्ले नहीं हैं.लोग गालियाँ देते हुए ट्रेन की ओर दौड़ते.एक बार गर्मी की छुट्टियों में उसका बेटा वहां आया हुआ था उसने पिता से शिकायत की कि वे ऐसा काम क्यों करते हैं जिससे लोग उन्हें गालियाँ देते हैं तो उसने हंसकर कहा बेटा कुछ लेते तो नहीं हैं कुछ देकर ही तो जाते हैं चाहे गालियाँ ही सही.कुछ इसी तरह हमारा यह विभाग भी बेशर्म हो चुका है.अब तक किसी भी राज्य या केंद्र सरकार ने इस विभाग से भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाया है जबकि सबको पता हैं कि यह जनवितरण प्रणाली की जगह भ्रष्टाचार वितरण प्रणाली बन चुकी है.कब तक जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा सब्सिडी के माध्यम से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता रहेगा?कोई भी दल जब तक विपक्ष में रहता है तब तक तो भ्रष्टाचार मिटाने के लम्बे-चौड़े वादे करता है परन्तु सत्ता में आते है इस भ्रष्ट प्रणाली का एक हिस्सा बनकर रह जाता है.सभी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस विभाग से भ्रष्ट अधिकारियों को बर्खास्त करने की दिशा में कदम सुनिश्चित करना चाहिए.केंद्र को राज्यों के साथ भी इस मामले में बातचीत करनी चाहिए.अधिकारियों पर कार्रवाई होते ही दुकानदार खुद ही रास्ते पर आ जायेंगे.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh