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चर्चा में रहने की बीमारी

ब्रज की दुनिया
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मेडिकल साइंस जितनी तेजी से तरक्की कर रहा है उससे कहीं अधिक तेजी से नई-नई बीमारियाँ सामने आ रही हैं.इनमें से कुछ रोग शारीरिक हैं तो कुछ मानसिक.एक नई और लाईलाज बीमारी महामारी की तरह अपने पांव पसार रही है.बीमारी मानसिक है और वैज्ञानिक अभी तक उसके कारणों का पता भी नहीं लगा पाए हैं.मैं उसका जैववैज्ञानिक नाम तो नहीं जानता लेकिन साधारण बोलचाल की भाषा में उसे चर्चा में रहने की बीमारी कहा जाता है.यह बीमारी होते ही रोगी अजीबोगरीब हरकतें करने लगता है.कोई नाखून बढाने लगता है तो कोई दाढ़ी.इस बीमारी का सबसे प्रचलित और सामान्य लक्षण है किसी मृत या जीवित व्यक्ति के खिलाफ अनाप-शनाप बकने लगना.कुछ साल पहले यही बीमारी धर्मवीर नाम के एक गुमनाम साहित्यकार को हो गई थी.लगे उपन्यास सम्राट प्रेमचंद को गालियाँ देने.सामंतों का मुंशी तक कह दिया.कहने की देर थी कि हिंदी के सभी मठाधीशों की प्यालियों में तूफ़ान आ गया.हमारे कुछ पत्रकार बंधुओं को भी यह बीमारी है. जब-जब उन्हें इस बीमारी का दौरा पड़ता है तब-तब वे कभी प्रभाष जोशी को तो कभी मृणाल पाण्डे को थोक के भाव में गालियाँ देने लगते हैं.लेकिन इस रोग से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं बाल ठाकरे.उनको किसी-न-किसी तरह चर्चा में रहने की गंभीर बीमारी है.जब भी उनके ऊपर यह बीमारी हावी होती है उनके कार्यकर्ताओं को भी सड़क पर उतरकर हाथ साफ करने का मौका मिल जाता है.अभी फ़िर से उन पर इसका दौरा पड़ा हुआ है और वे हाथ धोकर शाहरूख खान के पीछे पड़े हैं.देखिये कब दौरे का असर कम होता है.वैसे भी जब तक वैज्ञानिक इसका इलाज नहीं ढूढ़ लेते हैं तब तक सिवाय इंतज़ार करने के हम कर भी क्या सकते है?

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