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क्यों नहीं फैले नक्सली आन्दोलन ?

ब्रज की दुनिया
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किसी शायर ने कभी कहा था बर्बादे गुलिस्तां के लिए बस एक ही उल्लू काफी है, हर डाल पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा?तब शायद शायर को इस सवाल का जवाब मालूम नहीं था.आज अगर वह जिन्दा होता तो शेर में प्रश्नवाचक चिन्ह लगाता ही नहीं.लोग कहते हैं कि भारत में नक्सलवाद क्यों पनप रहा है? मैं पूछता हूँ कि वर्तमान भारत में नक्सलवाद क्यों नहीं पनपे?क्या देश से गरीबी समाप्त हो गई है? क्या भारत के हर हाथ को काम मिल गया है?अगर नहीं और स्थितियां पहले से भी बदतर हो रही हैं तो बेशक नक्सलवाद के न पनपने की जगह पनपने के कारण ज्यादा हैं और ज्यादा शक्तिशाली भी.भारतीय लोकतंत्र के चारों स्तंभों में घुन लग गया है.संसद के एक तिहाई सदस्य दागी हैं और जो दागी नहीं हैं उनकी संपत्तियों की केवल जाँच करा दी जाए तो उन मिस्टर क्लीनों में से अधिकतर आय से ज्यादा संपत्ति रखने के दोषी पाए जायेंगे.पंचायत से लेकर संसद तक लगभग सभी जनप्रतिनिधि भ्रष्टाचार में लिप्त है और गलत तरीके से धन कमाने में लगे हुए हैं.जनता अब तक चुप है लेकिन कब तक वह धैर्य रख पायेगी?लोकतंत्र के इस्पाती ढांचे यानी कार्यपालिका की दशा भी कोई अच्छी नहीं है.मंत्री से लेकर चपरासी तक का वेतन से ज्यादा ऊपरी कमाई पर ज्यादा ध्यान रहता है.बिना सुविधाशुल्क दिए कुछ अपवादों को छोड़कर कोई काम नहीं होता.यहाँ तक कि तंत्र भूमिहीनों पर भी दया नहीं करता और इंदिरा आवास के रूपयों में से भी कमीशन ले लेता है.निराश लोगों की आखिरी उम्मीद न्यायपालिका खुद ही भ्रष्टाचार में आपादमस्तक डूबी हुई है.बदली से लेकर प्रोन्नति तक में दिनरात करोड़ों का खेल चलता रहता है.जनता 20-20 सालों से अपने मुकदमे के फैसले का इंतजार कर रही  है लेकिन उसे सिवाय तारीख के कुछ नहीं मिल रहा.वकीलों और पेशकारों की जेबें गर्म होती रहती हैं और साथ ही आम जनता का दिमाग भी.ज्यादातर मामलों में माननीय न्यायाधीश भी अपनी जेब गर्म करने से परहेज नहीं करते.लोकतंत्र के आखिरी स्तम्भ यानी मीडिया की हालत तो और भी ख़राब है और वहां भी सभी काम चांदी की खनक से ही होते हैं.ऊपर से नीचे तक चापलूसी और घूस.अधिकतर समाचार पैसे लेकर छापे जाते हैं.अब आप ही बताईये कि जनता अपनी समस्याओं के समाधान के लिए नक्सलवादियों के पास नहीं जाए तो कहाँ जाए?मैं हर तरह की हिंसा के खिलाफ हूँ.लेकिन भारत का प्रत्येक आदमी ऐसा तो नहीं सोंचता.

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